( २२ )
विषय
गाथा
विषय
गाथा
शुद्ध जीवने समस्त संसारविकार नहीं
निश्चय मनो-वचनगुप्तिनुं स्वरूप
६९
एवुं निरूपण
४२
निश्चय कायगुप्तिनुं स्वरूप
७०
शुद्ध आत्माने समस्त विभावोनो अभाव
भगवान अर्हत् परमेष्ठीनुं स्वरूप
७१
छे एवुं कथन
४३
भगवन्त सिद्धपरमेष्ठियोनुं स्वरूप
७२
शुद्ध जीवनुं स्वरूप
४४
भगवन्त आचार्यनुं स्वरूप
७३
कारणपरमात्माने समस्त पौद्गलिक विकार
अध्याप्क नामक परमगुरुनुं स्वरूप
७४
नथी एवुं कथन
४५
सर्वसाधुओना स्वरूपनुं कथन
७५
संसारी अने र्मुंत जीवोमां अन्तर न
व्यवहारचारित्र-अधिकारनो उपसंहार अने
होनेनुं कथन
४७
निश्चयचारित्रनी सूचना
७६
कार्यसमयसार अने कारणसमयसारमां अन्तर
५ – परमार्थप्रतिक्र मण अधिकार
न होनेनुं कथन
४८
शुद्ध आत्माने सकल कर्तृत्वना अभाव
निश्चय अने व्यवहारनयकी उपदेयतानुं
विषे सम्बन्धी कथन
७७
प्रकाशन
४९
भेदविज्ञान द्वारा क्र मे निश्चय-चारित्र थाय
हेय-उपदेय अथवा त्याग-ग्रहणनुं स्वरूप
छे ए विषे कथन
८२
रत्नत्रयनुं स्वरूप
५१
वचनमय प्रतिक्र मण नामक सूत्रसमुदायनुं
४ – व्यवहारचारित्र अधिकार
निरास.
८३
अहिंसाव्रतनुं स्वरूप
५६
आत्म-आराधनामां वर्तता जीवने ज प्रति-
सत्यव्रतनुं स्वरूप
५७
क्र मणस्वरूप कहेल छे, ए विषे कथन
८४
अचौर्यव्रतनुं स्वरूप
५८
परमोपेक्षासंयमधरने निश्चयप्रतिक्र मणनुं स्वरूप
ब्रह्मचर्यव्रतनुं स्वरूप
५९
होय छे, ए विषे निरूपण
८५
प्रिग्रह-प्रित्यागव्रतनुं स्वरूप
६०
उन्मार्गना प्रित्याग अने सर्वज्ञवीतरागमार्गना
इर्र्यासमितिनुं स्वरूप
६१
स्वीकार सम्बन्धी वर्णन
८६
भाषासमितिनुं स्वरूप
६२
निःशल्यभावे परिणत महातपोधन ज निश्चय-
ेएषणासमितिनुं स्वरूप
६३
प्रतिक्र मणस्वरूप छे, ए विषे कथन
८७
आदाननिक्षेपणसमितिनुं स्वरूप
६४
त्रिगुप्ति गुप्त एवा परम तपोधनने
प्रतिष्ठापनसमितिनुं स्वरूप
६५
निश्चयचारित्र होवानुं कथन
८८
व्यवहार मनोगुप्तिनुं स्वरूप
६६
ध्यानना भेदोनुं स्वरूप
८९
वचनगुप्तिनुं स्वरूप
६७
आसन्नभव्य अने अनासन्नभव्य जीवना
कायगुप्तिनुं स्वरूप
६८
पूर्वापर परिणामनुं स्वरूप
९०