( २३ )
विषय
गाथा
विषय
गाथा
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रनुं सम्पूर्ण स्वीकार करवाथी
आलोचनाना स्वरूपना भेदोनुं कथन
१०८
अने मिथ्यादर्शनचारित्रनुं सम्पूर्ण त्याग करवाथी
मुमुक्षुने निश्चयप्रतिक्र मण थाय छे,
ए विषे कथन
मुमुक्षुने निश्चयप्रतिक्र मण थाय छे,
ए विषे कथन
८ – शुद्धनिश्चय-प्रायश्चित्त अधिकार
निश्चय-प्रायश्चित्तनुं स्वरूप
११३
९१
चार कषायो पर विजय प्राप्त
मेळववाना उपायनुं स्वरूप
११५
निश्चय उत्तमार्थप्रतिक्र मणनुं स्वरूप
९२
‘‘शुद्ध ज्ञाननुं स्वीकार करनेवाळाने प्रायश्चित्त
ध्यान एक उपादेय छे
एवुं कथन
९३
छे’’ — एवुं कथन
११६
व्यवहार प्रतिक्र मणनुं सफ पणुं क्यारे कहेवाय
ए विषे कथन
९४
निश्चयप्रायश्चित्त समस्त आचरणोमां
परम आचरण छे, ए विषे कथन
११७
६ – निश्चय-प्रत्याख्यान अधिकार
शुद्ध कारणपरमात्मतत्त्वमां अन्तर्मुख रहीने
निश्चयनयना प्रत्याख्याननुं स्वरूप
९५
जे प्रतपन – ते तप छे, अने ए तप
अनन्तचतुष्टयात्मक निज आत्माना
प्रायश्चित्त छे, ए सम्बन्धी कथन
११८
ध्याननो उपदेश
९६
निश्चयधर्मध्यान सर्व भावोनो अभाव करवाने
परम भावनानी सन्मुख एवा ज्ञानीने
समर्थ छे
एवुं कथन
११९
शीखामण
९७
शुद्ध निश्चय नियमनुं स्वरूप
१२०
बन्धरहित आत्माने भाववा विषे शिखामण ९८ सकळ विभावना संन्यासनी विधि
निश्चयकायोत्सर्गनुं स्वरूप
१२१
९९
९ – परम-समाधि अधिकार
सर्वत्र आत्मा उपादेय छे
एवुं कथन
१००
संसारावस्थामां अने मुक्तिमां जीव
परमसमाधिनुं स्वरूप
१२२
निःसहाय छे — एवुं कथन
१०१
समता विना द्रव्यलिंगधारी श्रमणाभासने
एकत्वभावनारूपे प्रिणमेला सम्यग्ज्ञानीनुं
जराय मोक्षनुं साधन नथी, ए विषे
कथन
कथन
१२४
लक्षण
१०२
परम वीतरागसंयमीने सामायिकव्रत स्थायी छे,
आत्मगत दोषोथी मुकत थवाना उपायनुं
एवुं निरूपण
१२५
कथन
१०३
परममुमुक्षुनुं स्वरूप
१२६
परम तपोधननी भावशुद्धिनुं कथन
१०४
आत्मा ज उपादेय छे एवुं कथन
१२७
निश्चयप्रत्याख्यानना योग्य जीवनुं स्वरूप
१०५
रागद्वेषना अभावथी अपरिस्पंदरूपता होय
निश्चयप्रत्याख्यान अधिकारनो उपसंहार
१०६
छे, ते विषे कथन
१२८
७ – परम-आलोचन अधिकार
आर्त्त-रौद्र ध्यानना परित्याग द्वारा सनातन
निश्चय-आलोचनानुं स्वरूप
१०७
सामायिकव्रतना स्वरूपनुं कथन
१२९