( २४ )
विषय
गाथा
विषय
गाथा
सुकृ त-दृष्कृ तरूप कर्मना सन्यासनी विधि
१३०
बाह्य तथा अन्तर जल्प्नो निरास
१५०
नव कषायना विजय वडे प्राप्त थता
स्वात्माश्रित निश्चयधर्मध्यान अने निश्चय-
शुक्लध्यान ए बे ध्यानो ज उपादेय छे,
ए विषे कथन
ए विषे कथन
सामायिक चारित्रनुं स्वरूप
१३१
१५१
परम समाधि अधिकारनुं उपसंहार
१३३
परमवीतरागचारित्रमां स्थित परम
१० – परमभक्ति अधिकार
तपोधननुं स्वरूप
१५२
रत्नत्रयनुं स्वरूप
१३४
समस्त वचनसम्बन्धी व्यापारनो निरास
१५३
व्यवहारनयप्रधान सिद्धभक्तिनुं स्वरूप
१३५
शुद्धनिश्चयधर्मध्यानस्वरूप प्रतिक्र मणादि वगेरे
निजा परमात्माकी भक्तिनुं स्वरूप
१३६
करवा योग्य छे ए विषे कथन
१५४
निश्चय योगभक्तिनुं स्वरूप
१३७
साक्षात् अन्तर्मुख परमजिानयोगीने
विप्रीत अभिनिवेश रहित आत्मभाव ते
शिखामण
१५५
निश्चय-परमयोग छे, ए विषे कथन १३९
वचनसम्बन्धी व्यापारनी निवृत्तिना
भक्ति अधिकारनुं उपसंहार
१४०
हेतुनुं कथन
१५६
११ – निश्चय-परमावश्यक अधिकार
सहज तत्त्वनी आराधनानो विधि
१५७
निरन्तर स्ववशने निश्चय-आवश्यक होवा
परमावश्यक अधिकारनुं उपसंहार
१५८
विषे कथन
१४१
१२ – शुद्धोप्योग अधिकार
अवश परम जिनयोगीश्वरने परम आवश्यक-
ज्ञानीने स्व-पर स्वरूपनुं प्रकाशपणुं कथंचित्
कर्म जरूर छे
एनुं कथन
१४२
छे, ए विषे कथन
१५९
भेदोपचार-रत्नत्रयपरिणतिवाळा जीवने
केवलज्ञान अने के वलदर्शनना युगपद्
अवशपणुं नहि होवा विषे कथन
१४३
प्रवर्तन सम्बन्धी द्रष्टान्त द्वारा कथन
१६०
अन्यवश एवा अशुद्ध-अंतरात्मजीवनुं लक्षण १४४
अन्यवशनुं स्वरूप
अन्यवशनुं स्वरूप
आत्माना स्वपरप्रकाशकपणा सम्बन्धी
१४५
विरोध कथन
१६१
साक्षात् स्ववश परमजिानयोगीश्वरनुं
एकान्ते आत्माने परप्रकाशकपणा होवानी
स्वरूप
१४६
वातनुं खंडन
१६३
शुद्ध-निश्चय-आवश्यकनी प्राप्तिना उपायनुं
व्यवहारनयनुं सफ लतपणुं दर्शावनारुं कथन १६४
निश्चयनयथी स्वरूपनुं कथन
निश्चयनयथी स्वरूपनुं कथन
स्वरूप
१४७
१६५
शुद्धोपयोगोन्मुख जीवने सीख
१४८
शुद्धनिश्चयनयनी विवक्षाथी परदर्शननुं खंडन १६६
के वलज्ञाननुं स्वरूप
के वलज्ञाननुं स्वरूप
आवश्यक कर्मना अभावमां तपोधन
१६७
बहिरात्मा होय छे, ए विषे कथन
१४९