के वलज्ञानना अभावे सर्वज्ञपणुं होतुं नथी
ए विषे कथन
१६८
व्यवहारनयनी प्रगटताथी कथन
१६९
‘‘जीव ज्ञानस्वरूप छे’’ एम वितर्कपूर्वक
निरूपण
१७०
गुण-गुणीमां भेदनो अभाव होवा विषे
कथन
१७१
सर्वज्ञ वीतरागने वांछानुं अभाव होय छे,
ए विषे कथन
१७२
के वलज्ञानीने बंधना अभावना स्वरूप
विषे कथन
१७३
के वली भट्टारकना मनरहितपणा विषे
कथन
१७५
शुद्ध जीवने स्वभावगतिनी प्राप्ति थवाना
उपायनुं कथन
१७६
विषय
गाथा
विषय
गाथा
( २५ )
कारण-परमतत्त्वना स्वरूपनुं कथन
१७७
निरुपाधिस्वरूप जेनुं लक्षण छे एवा
परमात्मतत्त्व विषे कथन
१७८
सांसारिक विकार समूहना अभावने लीधे
परमतत्त्वने निर्वाण छे, ए विषे कथन १७९
परमनिर्वाणयोग्य परमतत्त्वनुं स्वरूप
१८०
परमतत्त्वना स्वरूपनुं कथन
१८१
भगवान सिद्धना स्वभावगुणोना स्वरूपनुं
कथन
१८२
सिद्धि अने सिद्धना एकत्वनुं प्रतिपादन
१८३
सिद्धक्षेत्रथी उ पर जीव-पुद्गलोना गमननो
निषेध
१८४
नियमशब्दनो अने तेना फळनुं उपसंहार
१८५
भव्यने शीखामण
१८६
शास्त्रना नाम कथन द्वारा शास्त्रनो उपसंहार
१८
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