तर्काब्जार्कं भट्टपूर्वाकलंकम् ।
तद्विद्याढयं वीरनन्दिं व्रतीन्द्रम् ।।३।।
अने कामवश बुद्धने तथा ब्रह्मा-विष्णु-महेशने केम पूजुं? (न ज पूजुं.) जेणे भवोने जीत्या छे तेने हुं वंदुं छुं — तेने प्रकाशमान एवा श्री जिन कहो, १सुगत कहो, २गिरिधर कहो,
[श्लोकार्थः — ] ५वाचंयमींद्रोनुं ( – जिनदेवोनुं) मुखकमळ जेनुं वाहन छे अने बे नयोना आश्रये सर्वस्व कहेवानी जेनी पद्धति छे ते वाणीने ( – जिनभगवंतोनी स्याद्वादमुद्रित वाणीने) हुं वंदुं छुं. २.
[श्लोकार्थः — ] उत्तम सिद्धांतरूपी श्रीना पति सिद्धसेन मुनीन्द्रने, ६तर्ककमळना सूर्य भट्ट अकलंक मुनीन्द्रने, ७शब्दसिंधुना चंद्र पूज्यपाद मुनीन्द्रने अने तद्दविद्याथी (सिद्धान्तादि त्रणेना ज्ञानथी) समृद्ध वीरनंदि मुनींद्रने हुं वंदुं छुं. ३.
२ ]
३वागीश्वर कहो के ४शिव कहो. १.
१.बुद्धने सुगत कहेवामां आवे छे. सुगत एटले (१) शोभनीकताने प्राप्त, अथवा (२) संपूर्णताने प्राप्त.
श्री जिनभगवान (१) मोहरागद्वेषना अभावने लीधे शोभनीकताने प्राप्त छे, अने (२) केवळज्ञानादिकने
पाम्या होवाने लीधे संपूर्णताने प्राप्त छे; तेथी तेमने अहीं सुगत कह्या छे.
२.कृष्णने गिरिधर (अर्थात् पर्वतने धरी राखनार) कहेवामां आव्या छे. श्री जिनभगवान अनंतवीर्यवान होवाथी तेमने अहीं गिरिधर कह्या छे.
३.ब्रह्माने अथवा बृहस्पतिने वागीश्वर (अर्थात् वाणीना अधिपति) कहेवामां आवे छे. श्री जिनभगवान दिव्य वाणीना प्रकाशक होवाथी तेमने अहीं वागीश्वर कह्या छे.
४.महेशने (शंकरने) शिव कहेवामां आवे छे. श्री जिनभगवान कल्याणस्वरूप होवाथी तेमने अहीं शिव
कहेवामां आव्या छे.
५.वाचंयमींद्रो=मुनिओमां प्रधान अर्थात् जिनदेवो; मौन सेवनाराओमां श्रेष्ठ अर्थात् जिनदेवो; वाक्- संयमीओमां इन्द्र समान अर्थात् जिनदेवो. [वाचंयमी=मुनि; मौन सेवनार; वाणीना संयमी.]
६.तर्ककमळना सूर्य=तर्करूपी कमळने प्रफुल्लित करवामां सूर्य समान
७.शब्दसिंधुना चंद्र=शब्दरूपी समुद्रने उछाळवामां चंद्र समान