Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 4-7.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
जीव अधिकार
[ ३
(अनुष्टुभ्)
अपवर्गाय भव्यानां शुद्धये स्वात्मनः पुनः
वक्ष्ये नियमसारस्य वृत्तिं तात्पर्यसंज्ञिकाम् ।।।।
किंच
(आर्या)
गुणधरगणधररचितं श्रुतधरसन्तानतस्तु सुव्यक्त म्
परमागमार्थसार्थं वक्तु ममुं के वयं मन्दाः ।।।।
अपि च
(अनुष्टुभ्)
अस्माकं मानसान्युच्चैः प्रेरितानि पुनः पुनः
परमागमसारस्य रुच्या मांसलयाऽधुना ।।।।
(अनुष्टुभ्)
पंचास्तिकायषड्द्रव्यसप्ततत्त्वनवार्थकाः
प्रोक्ताः सूत्रकृता पूर्वं प्रत्याख्यानादिसत्क्रियाः ।।।।

अलमलमतिविस्तरेण स्वस्ति साक्षादस्मै विवरणाय

[श्लोकार्थः] भव्योना मोक्षने माटे तेम ज निज आत्मानी शुद्धिने अर्थे नियमसारनी ‘तात्पर्यवृत्ति’ नामनी टीका हुं कहीश. ४.

वळी

[श्लोकार्थः] गुणना धरनार गणधरोथी रचायेला अने श्रुतधरोनी परंपराथी सारी रीते व्यक्त करायेला आ परमागमना अर्थसमूहनुं कथन करवाने अमे मंदबुद्धि ते कोण? ५.

तथापि

[श्लोकार्थः] हमणां अमारुं मन परमागमना सारनी पुष्ट रुचिथी फरी फरीने अत्यंत प्रेरित थाय छे. [ए रुचिथी प्रेरित थवाने लीधे ‘तात्पर्यवृत्ति’ नामनी आ टीका रचाय छे.] ६.

[श्लोकार्थः] सूत्रकारे पूर्वे पांच अस्तिकाय, छ द्रव्य, सात तत्त्व अने नव पदार्थ तेम ज प्रत्याख्यानादि सत्क्रिया कहेल छे (अर्थात् भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे आ शास्त्रमां प्रथम पांच अस्तिकाय वगेरे अने पछी प्रत्याख्यानादि सत्क्रिया कहेल छे). ७.

अति विस्तारथी बस थाओ, बस थाओ. साक्षात् आ विवरण जयवंत वर्तो.