Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 5,12.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
जीव अधिकार
[ ११
अत्तागमतच्चाणं सद्दहणादो हवेइ सम्मत्तं
ववगयअसेसदोसो सयलगुणप्पा हवे अत्तो ।।।।
आप्तागमतत्त्वानां श्रद्धानाद्भवति सम्यक्त्वम्
व्यपगताशेषदोषः सकलगुणात्मा भवेदाप्तः ।।।।

व्यवहारसम्यक्त्वस्वरूपाख्यानमेतत

आप्तः शंकारहितः शंका हि सकलमोहरागद्वेषादयः आगमः तन्मुखारविन्द- विनिर्गतसमस्तवस्तुविस्तारसमर्थनदक्षः चतुरवचनसंदर्भः तत्त्वानि च बहिस्तत्त्वान्तस्तत्त्व- परमात्मतत्त्वभेदभिन्नानि अथवा जीवाजीवास्रवसंवरनिर्जराबन्धमोक्षाणां भेदात्सप्तधा भवन्ति तेषां सम्यक्श्रद्धानं व्यवहारसम्यक्त्वमिति

(आर्या)
भवभयभेदिनि भगवति भवतः किं भक्ति रत्र न समस्ति
तर्हि भवाम्बुधिमध्यग्राहमुखान्तर्गतो भवसि ।।१२।।
रे! आप्त-आगम-तत्त्वनी श्रद्धाथी समकित होय छे;
निःशेषदोषविहीन जे गुणसकळमय ते आप्त छे. ५.

अन्वयार्थः[आप्तागमतत्त्वानां] आप्त, आगम अने तत्त्वोनी [श्रद्धानात्] श्रद्धाथी [सम्यक्त्वम्] सम्यक्त्व [भवति] होय छे; [व्यपगताशेषदोषः] जेना अशेष (समस्त) दोषो दूर थया छे एवो जे [सकलगुणात्मा] सकळगुणमय पुरुष [आप्तः भवेत्] ते आप्त छे.

टीकाःआ, व्यवहारसम्यक्त्वना स्वरूपनुं कथन छे.

आप्त एटले शंकारहित. शंका एटले सकळ मोहरागद्वेषादिक (दोषो). आगम एटले आप्तना मुखारविंदमांथी नीकळेली, समस्त वस्तुविस्तारनुं स्थापन करवामां समर्थ एवी चतुर वचनरचना. तत्त्वो बहिःतत्त्व अने अंतःतत्त्वरूप परमात्मतत्त्व एवा (बे) भेदोवाळां छे अथवा जीव, अजीव, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्ष एवा भेदोने लीधे सात प्रकारनां छे. तेमनुं (आप्तनुं, आगमनुं अने तत्त्वनुं) सम्यक् श्रद्धान ते व्यवहारसम्यक्त्व छे.

[हवे पांचमी गाथानी टीका पूर्ण करतां श्लोक कहेवामां आवे छेः] [श्लोकार्थः] भवना भयने भेदनारा आ भगवान प्रत्ये शुं तने भक्ति नथी?