Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

कारणशुद्धजीवः अयं चेतनः अस्य चेतनगुणाः अयममूर्तः अस्यामूर्तगुणाः अयं शुद्धः अस्य शुद्धगुणाः अयमशुद्धः अस्याशुद्धगुणाः पर्यायश्च तथा गलनपूरण- स्वभावसनाथः पुद्गलः श्वेतादिवर्णाधारो मूर्तः अस्य हि मूर्तगुणाः अयमचेतनः अस्याचेतनगुणाः स्वभावविभावगतिक्रियापरिणतानां जीवपुद्गलानां स्वभावविभावगतिहेतुः धर्मः स्वभावविभावस्थितिक्रियापरिणतानां तेषां स्थितिहेतुरधर्मः पंचानामवकाशदान- (जीव) चेतन छे; आना (


जीवना) चेतन गुणो छे. आ अमूर्त छे; आना अमूर्त गुणो छे. आ शुद्ध छे; आना शुद्ध गुणो छे. आ अशुद्ध छे; आना अशुद्ध गुणो छे. पर्याय पण ए प्रमाणे छे.

वळी, जे गलन-पूरणस्वभाव सहित छे (अर्थात् छूटा पडवाना अने भेगा थवाना स्वभाववाळुं छे) ते पुद्गल छे. आ (पुद्गल) श्वेतादि वर्णोना आधारभूत मूर्त छे; आना मूर्त गुणो छे. आ अचेतन छे; आना अचेतन गुणो छे.

स्वभावगतिक्रियारूपे अने विभावगतिक्रियारूपे परिणत जीव-पुद्गलोने स्वभावगतिनुं अने विभावगतिनुं निमित्त ते धर्म छे.

स्वभावस्थितिक्रियारूपे अने विभावस्थितिक्रियारूपे परिणत जीव-पुद्गलोने स्थितिनुं (स्वभावस्थितिनुं अने विभावस्थितिनुं) निमित्त ते अधर्म छे.

शुद्ध (केवळज्ञानादि सहित) थाय छे अर्थात् ‘कार्यशुद्ध जीव’ थाय छे. शक्तिमांथी व्यक्ति थाय
छे, माटे शक्ति कारण छे अने व्यक्ति कार्य छे. आम होवाथी शक्तिरूप शुद्धतावाळा जीवने
कारणशुद्ध जीव कहेवाय छे अने व्यक्त शुद्धतावाळा जीवने कार्यशुद्ध जीव कहेवाय छे. [कारणशुद्ध
एटले कारण-अपेक्षाए शुद्ध अर्थात
् शक्ति-अपेक्षाए शुद्ध. कार्यशुद्ध एटले कार्य-अपेक्षाए शुद्ध

अर्थात् व्यक्ति-अपेक्षाए शुद्ध.]

२२ ]

१. चौदमा गुणस्थानना अंते जीव ऊर्ध्वगमनस्वभावथी लोकांते जाय ते जीवनी स्वभावगतिक्रिया छे अने संसारावस्थामां कर्मना निमित्ते गमन करे ते जीवनी विभावगतिक्रिया छे. एक छूटो परमाणु
गति करे ते पुद्गलनी स्वभावगतिक्रिया छे अने पुद्गलस्कंध गमन करे ते पुद्गलनी (स्कंधमांना
दरेक परमाणुनी) विभावगतिक्रिया छे. आ स्वाभाविक तेम ज वैभाविक गतिक्रियामां धर्मद्रव्य
निमित्तमात्र छे.

२. सिद्धदशामां जीव स्थिर रहे ते जीवनी स्वाभाविक स्थितिक्रिया छे अने संसारदशामां स्थिर रहे ते जीवनी वैभाविक स्थितिक्रिया छे. एकलो परमाणु स्थिर रहे ते पुद्गलनी स्वाभाविक
स्थितिक्रिया छे अने स्कंध स्थिर रहे ते पुद्गलनी (
स्कंधमांना दरेक परमाणुनी) वैभाविक स्थितिक्रिया छे. आ जीव-पुद्गलनी स्वाभाविक तेम ज वैभाविक स्थितिक्रियामां अधर्मद्रव्य
निमित्तमात्र छे.