Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 16 Gatha: 10.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
जीव अधिकार
[ २३

लक्षणमाकाशम् पंचानां वर्तनाहेतुः कालः चतुर्णाममूर्तानां शुद्धगुणाः, पर्यायाश्चैतेषां तथाविधाश्च

(मालिनी)
इति जिनपतिमार्गाम्भोधिमध्यस्थरत्नं
द्युतिपटलजटालं तद्धि षड्द्रव्यजातम्
हृदि सुनिशितबुद्धिर्भूषणार्थं विधत्ते
स भवति परमश्रीकामिनीकामरूपः
।।१६।।

जीवो उवओगमओ उवओगो णाणदंसणो होइ णाणुवओगो दुविहो सहावणाणं विहावणाणं ति ।।१०।।

(बाकीनां) पांच द्रव्योने अवकाशदान (अवकाश देवो ते) जेनुं लक्षण छे ते आकाश छे.

(बाकीनां) पांच द्रव्योने वर्तनानुं निमित्त ते काळ छे. (जीव सिवायनां) चार अमूर्त द्रव्योना शुद्ध गुणो छे; तेमना पर्यायो पण तेवा (शुद्ध ज) छे.

[हवे नवमी गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज श्लोक द्वारा छ द्रव्यनी श्रद्धानुं फळ वर्णवे छेः]

[श्लोकार्थः] ए रीते ते षट्द्रव्यसमूहरूपी रत्ननेके जे (रत्न) तेजना अंबारने लीधे किरणोवाळुं छे अने जे जिनपतिना मार्गरूपी समुद्रना मध्यमां रहेलुं छे तेनेजे तीक्ष्ण बुद्धिवाळो पुरुष हृदयमां भूषणार्थे (शोभा माटे) धारण करे छे, ते पुरुष परमश्रीरूपी कामिनीनो वल्लभ थाय छे (अर्थात् जे पुरुष अंतरंगमां छ द्रव्यनी यथार्थ श्रद्धा करे छे, ते मुक्तिलक्ष्मीने वरे छे). १६.

उपयोगमय छे जीव ने उपयोग दर्शन-ज्ञान छे;
ज्ञानोपयोग स्वभाव तेम विभावरूप द्विविध छे. १०.

अन्वयार्थः[जीवः] जीव [उपयोगमयः] उपयोगमय छे. [उपयोगः] उपयोग