Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
जीव उपयोगमयः उपयोगो ज्ञानदर्शनं भवति
ज्ञानोपयोगो द्विविधः स्वभावज्ञानं विभावज्ञानमिति ।।१०।।

अत्रोपयोगलक्षणमुक्त म्

आत्मनश्चैतन्यानुवर्ती परिणामः स उपयोगः अयं धर्मः जीवो धर्मी अनयोः सम्बन्धः प्रदीपप्रकाशवत ज्ञानदर्शनविकल्पेनासौ द्विविधः अत्र ज्ञानोपयोगोऽपि स्वभावविभावभेदाद् द्विविधो भवति इह हि स्वभावज्ञानम् अमूर्तम् अव्याबाधम् अतीन्द्रियम् अविनश्वरम् तच्च कार्यकारणरूपेण द्विविधं भवति कार्यं तावत सकलविमलकेवलज्ञानम् तस्य कारणं परमपारिणामिकभावस्थितत्रिकालनिरुपाधिरूपं सहजज्ञानं स्यात केवलं विभावरूपाणि ज्ञानानि त्रीणि कुमतिकुश्रुतविभङ्गभाञ्जि भवन्ति एतेषाम् उपयोगभेदानां ज्ञानानां भेदो वक्ष्यमाणसूत्रयोर्द्वयोर्बोद्धव्य इति [ज्ञानदर्शनं भवति] ज्ञान अने दर्शन छे. [ज्ञानोपयोगः द्विविधः] ज्ञानोपयोग बे प्रकारनो


छेः [स्वभावज्ञानं] स्वभावज्ञान अने [विभावज्ञानम् इति] विभावज्ञान.

टीकाःअहीं (आ गाथामां) उपयोगनुं लक्षण कह्युं छे.

आत्मानो चैतन्य-अनुवर्ती (चैतन्यने अनुसरीने वर्तनारो) परिणाम ते उपयोग छे. उपयोग धर्म छे, जीव धर्मी छे. दीपक अने प्रकाशना जेवो एमनो संबंध छे. ज्ञान अने दर्शनना भेदथी आ उपयोग बे प्रकारनो छे (अर्थात् उपयोगना बे प्रकार छेः ज्ञानोपयोग अने दर्शनोपयोग). आमां ज्ञानोपयोग पण स्वभाव अने विभावना भेदने लीधे बे प्रकारनो छे (अर्थात् ज्ञानोपयोगना पण बे प्रकार छेः स्वभाव- ज्ञानोपयोग अने विभावज्ञानोपयोग). तेमां स्वभावज्ञान अमूर्त, अव्याबाध, अतीन्द्रिय अने अविनाशी छे; ते पण कार्य अने कारणरूपे बे प्रकारनुं छे (अर्थात स्वभावज्ञानना पण बे प्रकार छेः कार्यस्वभावज्ञान अने कारणस्वभावज्ञान). कार्य तो सकळविमळ (सर्वथा निर्मळ) केवळज्ञान छे अने तेनुं कारण परम पारिणामिकभावे रहेलुं त्रिकाळनिरुपाधिरूप सहजज्ञान छे. केवळ विभावरूप ज्ञानो त्रण छेः कुमति, कुश्रुत अने विभंग.

आ उपयोगना भेदरूप ज्ञानना भेदो, हवे कहेवामां आवतां बे सूत्रो द्वारा (११ ने १२मी गाथा द्वारा) जाणवा.

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