Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 20-22.

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नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
(शार्दूलविक्रीडित)
शस्ताशस्तसमस्तरागविलयान्मोहस्य निर्मूलनाद्
द्वेषाम्भःपरिपूर्णमानसघटप्रध्वंसनात
् पावनम्
ज्ञानज्योतिरनुत्तमं निरुपधि प्रव्यक्ति नित्योदितं
भेदज्ञानमहीजसत्फलमिदं वन्द्यं जगन्मंगलम्
।।२०।।
(मन्दाक्रांता)
मोक्षे मोक्षे जयति सहजज्ञानमानन्दतानं
निर्व्याबाधं स्फु टितसहजावस्थमन्तर्मुखं च
लीनं स्वस्मिन्सहजविलसच्चिच्चमत्कारमात्रे
स्वस्य ज्योतिःप्रतिहततमोवृत्ति नित्याभिरामम्
।।२१।।
(अनुष्टुभ्)
सहजज्ञानसाम्राज्यसर्वस्वं शुद्धचिन्मयम्
ममात्मानमयं ज्ञात्वा निर्विकल्पो भवाम्यहम् ।।२२।।

[श्लोकार्थः] मोहने निर्मूळ करवाथी, प्रशस्त-अप्रशस्त समस्त रागनो विलय करवाथी अने द्वेषरूपी जळथी भरेला मनरूपी घडानो नाश करवाथी, पवित्र, अनुत्तम, ज्ञानरूपी वृक्षनुं आ सत्फळ वंद्य छे, जगतने मंगळरूप छे. २०.

[श्लोकार्थः] आनंदमां जेनो फेलाव छे, जे अव्याबाध (बाधा रहित) छे, जेनी सहज अवस्था खीली नीकळी छे, जे अंतर्मुख छे, जे पोतामांसहज विलसता (खेलता, परिणमता) चित्चमत्कारमात्रमांलीन छे, जेणे निज ज्योतिथी तमोवृत्तिने (अंधकारदशाने, अज्ञानपरिणतिने) नष्ट करी छे अने जे नित्य अभिराम (सदा सुंदर) छे, एवुं सहजज्ञान संपूर्ण मोक्षमां जयवंत वर्ते छे. २१.

[श्लोकार्थः] सहजज्ञानरूपी साम्राज्य जेनुं सर्वस्व छे एवो शुद्धचैतन्यमय मारा आत्माने जाणीने, हुं आ निर्विकल्प थाउं. २२.

३० ]

निरुपधि अने नित्य-उदित (सदा प्रकाशमान) एवी ज्ञानज्योति प्रगट थाय छे. भेद-

१. अनुत्तम = जेनाथी बीजुं कांई उत्तम नथी एवी; सर्वश्रेष्ठ.
२. निरुपधि = उपधि विनानी; परिग्रह रहित; बाह्य सामग्री रहित; उपाधि रहित; छळकपट रहित
सरळ.

३. सत्फळ = सुंदर फळ; सारुं फळ; उत्तम फळ; साचुं फळ.