Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

पल्योपमायुषः रत्नशर्करावालुकापंकधूमतमोमहातमःप्रभाभिधानसप्तपृथ्वीनां भेदान्नारकजीवाः सप्तधा भवन्ति प्रथमनरकस्य नारका ह्येकसागरोपमायुषः द्वितीयनरकस्य नारकाः त्रिसागरोपमायुषः तृतीयस्य सप्त चतुर्थस्य दश पंचमस्य सप्तदश षष्ठस्य द्वाविंशतिः सप्तमस्य त्रयस्त्रिंशत अथ विस्तरभयात् संक्षेपेणोच्यते तिर्यञ्चः सूक्ष्मैकेन्द्रियपर्याप्तका- पर्याप्तकबादरैकेन्द्रियपर्याप्तकापर्याप्तकद्वींद्रियपर्याप्तकापर्याप्तकत्रीन्द्रियपर्याप्तकापर्याप्तक- चतुरिन्द्रियपर्याप्तकापर्याप्तकासंज्ञिपंचेन्द्रियपर्याप्तकापर्याप्तकसंज्ञिपंचेन्द्रियपर्याप्तकापर्याप्तकभेदा- च्चतुर्दशभेदा भवन्ति भावनव्यंतरज्योतिःकल्पवासिकभेदाद्देवाश्चतुर्णिकायाः एतेषां चतुर्गति- जीवभेदानां भेदो लोकविभागाभिधानपरमागमे द्रष्टव्यः इहात्मस्वरूपप्ररूपणान्तरायहेतुरिति पूर्वसूरिभिः सूत्रकृद्भिरनुक्त इति


अने एक पल्योपम, बे पल्योपम अथवा त्रण पल्योपमना आयुषवाळा छे.

रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा अने महातमःप्रभा नामनी सात पृथ्वीना भेदने लीधे नारक जीवो सात प्रकारे छे. पहेली नरकना नारको एक सागरोपमना आयुषवाळा छे, बीजी नरकना नारको त्रण सागरोपमना आयुषवाळा छे, त्रीजी नरकना नारको सात सागरोपमना आयुषवाळा छे, चोथी नरकना नारको दस सागरोपम, पांचमी नरकना सत्तर सागरोपम, छठ्ठी नरकना बावीश सागरोपम अने सातमी नरकना नारको तेत्रीश सागरोपमना आयुषवाळा छे.

हवे विस्तारना भयने लीधे संक्षेपथी कहेवामां आवे छेः

तिर्यंचोना चौद भेद छेः (१-२) सूक्ष्म एकेंद्रिय पर्याप्त अने अपर्याप्त, (३-४) बादर एकेंद्रिय पर्याप्त अने अपर्याप्त, (५-६) द्वींद्रिय पर्याप्त अने अपर्याप्त, (७-८) त्रींद्रिय पर्याप्त अने अपर्याप्त, (९-१०) चतुरिंद्रिय पर्याप्त अने अपर्याप्त, (११-१२) असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त अने अपर्याप्त, (१३-१४) संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त अने अपर्याप्त.

देवोना चार निकाय (समूह) छेः (१) भवनवासी, (२) व्यंतर, (३) ज्योतिष्क अने (४) कल्पवासी.

आ चार गतिना जीवोना भेदोना भेद लोकविभाग नामना परमागममां जोई लेवा. अहीं (आ परमागममां) आत्मस्वरूपना निरूपणमां अंतरायनो हेतु थाय तेथी सूत्रकर्ता पूर्वाचार्यमहाराजे (ते विशेष भेदो) कह्या नथी.

[हवे आ बे गाथाओनी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज बे श्लोको कहे छे]

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