Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
जीव अधिकार
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एकनयायत्तोपदेशो ग्राह्यः, किन्तु तदुभयनयायत्तोपदेशः सत्ताग्राहकशुद्धद्रव्यार्थिकनयबलेन पूर्वोक्त व्यञ्जनपर्यायेभ्यः सकाशान्मुक्तामुक्त समस्तजीवराशयः सर्वथा व्यतिरिक्ता एव कुतः ? ‘‘सव्वे सुद्धा हु सुद्धणया’’ इति वचनात विभावव्यंजनपर्यायार्थिकनयबलेन ते सर्वे जीवास्संयुक्ता भवन्ति किंच सिद्धानामर्थपर्यायैः सह परिणतिः, न पुनर्व्यंजनपर्यायैः सह परिणतिरिति कुतः ? सदा निरंजनत्वात सिद्धानां सदा निरंजनत्वे सति तर्हि द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकनयाभ्याम् द्वाभ्याम् संयुक्ताः सर्वे जीवा इति सूत्रार्थो व्यर्थः निगमो विकल्पः, तत्र भवो नैगमः स च नैगमनयस्तावत् त्रिविधः, भूतनैगमः वर्तमाननैगमः भाविनैगमश्चेति अत्र भूतनैगमनयापेक्षया भगवतां सिद्धानामपि व्यंजनपर्यायत्वमशुद्धत्वं च संभवति पूर्वकाले ते भगवन्तः संसारिण इति व्यवहारात किं बहुना, सर्वे जीवा


के प्रयोजन छे ते पर्यायार्थिक छे. एक नयने अवलंबतो उपदेश ग्रहवायोग्य नथी पण ते बन्ने नयोने अवलंबतो उपदेश ग्रहवायोग्य छे. सत्ताग्राहक (द्रव्यनी सत्ताने ज ग्रहण करनारा) शुद्ध द्रव्यार्थिक नयना बळे पूर्वोक्त व्यंजनपर्यायोथी मुक्त तेम ज अमुक्त (सिद्ध तेम ज संसारी) समस्त जीवराशि सर्वथा व्यतिरिक्त ज छे. केम? ‘सव्वे सुद्धा हु सुद्धणया (शुद्धनये सर्व जीव खरेखर शुद्ध छे)’ एवुं (शास्त्रनुं) वचन होवाथी. विभावव्यंजनपर्यायार्थिक नयना बळे ते सर्व जीवो (पूर्वोक्त व्यंजनपर्यायोथी) संयुक्त छे. विशेष एटलुं केसिद्ध जीवोने अर्थपर्यायो सहित परिणति छे, परंतु व्यंजनपर्यायो सहित परिणति नथी. केम? सिद्ध जीवो सदा निरंजन होवाथी. (प्रश्नः) जो सिद्ध जीवो सदा निरंजन छे तो बधा जीवो द्रव्यार्थिक तेम ज पर्यायार्थिक बन्ने नयोथी संयुक्त छे (अर्थात् बधा जीवोने बन्ने नयो लागु पडे छे) एवो सूत्रार्थ (गाथानो अर्थ) व्यर्थ ठरे छे. (उत्तरःव्यर्थ नथी ठरतो कारण के) निगम एटले विकल्प; तेमां होय ते *नैगम. ते नैगमनय त्रण प्रकारनो छेः भूत नैगम, वर्तमान नैगम अने भावी नैगम. अहीं भूत नैगमनयनी अपेक्षाए भगवंत सिद्धोने पण व्यंजनपर्यायवाळापणुं अने अशुद्धपणुं संभवे छे, केम के पूर्व काळे ते भगवंतो संसारीओ हता एवो व्यवहार छे. बहु कथनथी शुं? सर्व जीवो बे नयोना

*जे भूतकाळना पर्यायने वर्तमानवत् संकल्पित करे (अथवा कहे), भविष्यकाळना पर्यायने वर्तमानवत् संकल्पित करे (अथवा कहे), अथवा कंईक निष्पन्नतायुक्त अने कंईक अनिष्पन्नता- युक्त वर्तमान पर्यायने सर्वनिष्पन्नवत् संकल्पित करे (अथवा कहे), ते ज्ञानने (अथवा वचनने) नैगमनय कहे छे.