Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 37 Gatha: 21-23.

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अजीव अधिकार[ ४९

स्वभावपुद्गलो द्विधा भवति स्कंधाः षट्प्रकाराः स्युः, पृथ्वीजलच्छायाचतुरक्षविषयकर्म- प्रायोग्याप्रायोग्यभेदाः तेषां भेदो वक्ष्यमाणसूत्रेषूच्यते विस्तरेणेति

(अनुष्टुभ्)
गलनादणुरित्युक्त : पूरणात्स्कन्धनामभाक्
विनानेन पदार्थेन लोकयात्रा न वर्तते ।।३७।।

अइथूलथूल थूलं थूलसुहुमं च सुहुमथूलं च सुहुमं अइसुहुमं इदि धरादियं होदि छब्भेयं ।।२१।। भूपव्वदमादीया भणिदा अइथूलथूलमिदि खंधा थूला इदि विण्णेया सप्पीजलतेल्लमादीया ।।२२।। छायातवमादीया थूलेदरखंधमिदि वियाणाहि

सुहुमथूलेदि भणिया खंधा चउरक्खविसया य ।।२३।। छाया, (४) (चक्षु सिवायनी) चार इन्द्रियोना विषयभूत स्कंधो, (५) कर्मयोग्य स्कंधो अने (६) कर्मने अयोग्य स्कंधोआवा छ भेद छे. स्कंधोना भेद हवे कहेवामां आवतां सूत्रोमां (हवेनी चार गाथाओमां) विस्तारथी कहेवाशे.

[हवे २०मी गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव श्लोक कहे छेः ]

[श्लोकार्थः] (पुद्गलपदार्थ) गलन द्वारा (अर्थात् भिन्न पडवाथी) ‘परमाणु’ कहेवाय छे अने पूरण द्वारा (अर्थात् संयुक्त थवाथी) ‘स्कंध’ नामने पामे छे. आ पदार्थ विना लोकयात्रा होई शके नहि. ३७. अतिथूलथूल, थूल, थूलसूक्षम, सूक्ष्मथूल, वळी सूक्ष्म ने अतिसूक्ष्मएम धरादि पुद्गलस्कंधना छ विकल्प छे. २१. भूपर्वतादिक स्कंधने अतिथूलथूल जिने कह्या, घी-तेल-जळ इत्यादिने वळी थूल स्कंधो जाणवा; २२. आतप अने छायादिने थूलसूक्ष्म स्कंधो जाणजे,

चतुरिंद्रियना जे विषय तेने सूक्ष्मथूल कह्या जिने; २३.