Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 43-44.

< Previous Page   Next Page >


Page 60 of 380
PDF/HTML Page 89 of 409

 

नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
पुद्गलद्रव्यमुच्यते परमाणुर्निश्चयेन इतरेण
पुद्गलद्रव्यमिति पुनः व्यपदेशो भवति स्कन्धस्य ।।9।।

पुद्गलद्रव्यव्याख्यानोपसंहारोऽयम्

स्वभावशुद्धपर्यायात्मकस्य परमाणोरेव पुद्गलद्रव्यव्यपदेशः शुद्धनिश्चयेन इतरेण व्यवहारनयेन विभावपर्यायात्मनां स्कन्धपुद्गलानां पुद्गलत्वमुपचारतः सिद्धं भवति

(मालिनी)
इति जिनपतिमार्गाद् बुद्धतत्त्वार्थजातः
त्यजतु परमशेषं चेतनाचेतनं च
भजतु परमतत्त्वं चिच्चमत्कारमात्रं
परविरहितमन्तर्निर्विकल्पे समाधौ
।।४३।।
(अनुष्टुभ्)
पुद्गलोऽचेतनो जीवश्चेतनश्चेति कल्पना
साऽपि प्राथमिकानां स्यान्न स्यान्निष्पन्नयोगिनाम् ।।४४।।

अन्वयार्थः[निश्चयेन] निश्चयथी [परमाणुः] परमाणुने [पुद्गलद्रव्यम्] ‘पुद्गलद्रव्य’ [उच्यते] कहेवाय छे [पुनः] अने [इतरेण] व्यवहारथी [स्कन्धस्य] स्कंधने [पुद्गलद्रव्यम् इति व्यपदेशः] ‘पुद्गलद्रव्य’ एवुं नाम [भवति] होय छे.

टीकाःआ, पुद्गलद्रव्यना कथननो उपसंहार छे.

शुद्धनिश्चयनयथी स्वभावशुद्धपर्यायात्मक परमाणुने ज ‘पुद्गलद्रव्य’ एवुं नाम होय छे. अन्य एवा व्यवहारनयथी विभावपर्यायात्मक स्कंधपुद्गलोने पुद्गलपणुं उपचार द्वारा सिद्ध थाय छे.

[हवे २९मी गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज त्रण श्लोको कहे छेः] [श्लोकार्थः] ए रीते जिनपतिना मार्ग द्वारा तत्त्वार्थसमूहने जाणीने पर एवां समस्त चेतन अने अचेतनने त्यागो; अंतरंगमां निर्विकल्प समाधिने विषे परविरहित (परथी रहित) चित्चमत्कारमात्र परमतत्त्वने भजो. ४३.

[श्लोकार्थः] पुद्गल अचेतन छे अने जीव चेतन छे एवी जे कल्पना ते पण

६० ]