सचेतने वा परमात्मतत्त्वे ।
भवेदियं शुद्धदशा यतीनाम् ।।४५।।
धर्माधर्माकाशानां संक्षेपोक्ति रियम् ।
अयं धर्मास्तिकायः स्वयं गतिक्रियारहितः दीर्घिकोदकवत् । स्वभावगति-
क्रियापरिणतस्यायोगिनः पंचह्रस्वाक्षरोच्चारणमात्रस्थितस्य भगवतः सिद्धनामधेययोग्यस्य
प्राथमिकोने (प्रथम भूमिकावाळाओने) होय छे, निष्पन्न योगीओने होती नथी (अर्थात् जेमने योग परिपकव थयो छे तेमने होती नथी). ४४.
[श्लोकार्थः] (शुद्ध दशावाळा यतिओने) आ अचेतन पुद्गलकायमां द्वेषभाव होतो नथी के सचेतन परमात्मतत्त्वमां रागभाव होतो नथी;आवी शुद्ध दशा यतिओनी होय छे. ४५.
अन्वयार्थः[धर्मः] धर्म [जीवपुद्गलानां] जीव-पुद्गलोने [गमननिमित्तः] गमननुं निमित्त छे [च] अने [अधर्मः] अधर्म [स्थितेः] (तेमने) स्थितिनुं निमित्त छे; [आकाशं] आकाश [जीवादिसर्वद्रव्याणाम्] जीवादि सर्व द्रव्योने [अवगाहनस्य] अवगाहननुं निमित्त छे.
टीकाःआ, धर्म-अधर्मआकाशनुं संक्षिप्त कथन छे.
आ धर्मास्तिकाय, वावना पाणीनी माफक, पोते गतिक्रियारहित छे. मात्र (अ, इ, उ, ॠ, ऌृएवा) पांच ह्रस्व अक्षरना उच्चारण जेटली जेमनी स्थिति छे, जेओ ‘सिद्ध’