Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 45 Gatha: 30.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
अजीव अधिकार
[ ६१
(उपेन्द्रवज्रा)
अचेतने पुद्गलकायकेऽस्मिन्
सचेतने वा परमात्मतत्त्वे
न रोषभावो न च रागभावो
भवेदियं शुद्धदशा यतीनाम्
।।४५।।
गमणणिमित्तं धम्ममधम्मं ठिदि जीवपोग्गलाणं च
अवगहणं आयासं जीवादीसव्वदव्वाणं ।।३०।।
गमननिमित्तो धर्मोऽधर्मः स्थितेः जीवपुद्गलानां च
अवगाहनस्याकाशं जीवादिसर्वद्रव्याणाम् ।।३०।।

धर्माधर्माकाशानां संक्षेपोक्ति रियम्

अयं धर्मास्तिकायः स्वयं गतिक्रियारहितः दीर्घिकोदकवत स्वभावगति- क्रियापरिणतस्यायोगिनः पंचह्रस्वाक्षरोच्चारणमात्रस्थितस्य भगवतः सिद्धनामधेययोग्यस्य


प्राथमिकोने (प्रथम भूमिकावाळाओने) होय छे, निष्पन्न योगीओने होती नथी (अर्थात जेमने योग परिपकव थयो छे तेमने होती नथी). ४४.

[श्लोकार्थः] (शुद्ध दशावाळा यतिओने) आ अचेतन पुद्गलकायमां द्वेषभाव होतो नथी के सचेतन परमात्मतत्त्वमां रागभाव होतो नथी;आवी शुद्ध दशा यतिओनी होय छे. ४५.

जीव-पुद्गलोने गमन-स्थाननिमित्त धर्म-अधर्म छे;
जीवादि सर्व पदार्थने अवगाहहेतु आभ छे. ३०.

अन्वयार्थः[धर्मः] धर्म [जीवपुद्गलानां] जीव-पुद्गलोने [गमननिमित्तः] गमननुं निमित्त छे [च] अने [अधर्मः] अधर्म [स्थितेः] (तेमने) स्थितिनुं निमित्त छे; [आकाशं] आकाश [जीवादिसर्वद्रव्याणाम्] जीवादि सर्व द्रव्योने [अवगाहनस्य] अवगाहननुं निमित्त छे.

टीकाःआ, धर्म-अधर्मआकाशनुं संक्षिप्त कथन छे.

आ धर्मास्तिकाय, वावना पाणीनी माफक, पोते गतिक्रियारहित छे. मात्र (अ, इ, उ, ॠ, ऌृएवा) पांच ह्रस्व अक्षरना उच्चारण जेटली जेमनी स्थिति छे, जेओ ‘सिद्ध’