Niyamsar (Hindi). Gatha: 37.

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संख्याता असंख्याता अनन्ताश्च लोकाकाशधर्माधर्मैकजीवानामसंख्यातप्रदेशा भवन्ति
इतरस्यालोकाकाशस्यानन्ताः प्रदेशा भवन्ति कालस्यैकप्रदेशो भवति, अतः कारणादस्य
कायत्वं न भवति अपि तु द्रव्यत्वमस्त्येवेति
(उपेन्द्रवज्रा)
पदार्थरत्नाभरणं मुमुक्षोः
कृतं मया कंठविभूषणार्थम्
अनेन धीमान् व्यवहारमार्गं
बुद्ध्वा पुनर्बोधति शुद्धमार्गम्
।।५२।।
पोग्गलदव्वं मुत्तं मुत्तिविरहिया हवंति सेसाणि
चेदणभावो जीवो चेदणगुणवज्जिया सेसा ।।३७।।
७४ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
पुद्गलरूप परमाणु आकाशके जितने भागको रोकें उतना भाग वह आकाशका
प्रदेश है)
पुद्गलद्रव्यको ऐसे प्रदेश संख्यात, असंख्यात और अनन्त होते हैं
लोकाकाशको, धर्मको, अधर्मको तथा एक जीवको असंख्यात प्रदेश हैं शेष जो
अलोकाकाश उसे अनन्त प्रदेश हैं कालको एक प्रदेश है, उस कारणसे उसे कायत्व
नहीं है परन्तु द्रव्यत्व है ही
[अब इस दो गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक कहते हैं :]
[श्लोेकार्थ :] पदार्थोंरूपी (छह द्रव्योंरूपी) रत्नोंका आभरण मैंने मुमुक्षुके
कण्ठकी शोभाके हेतु बनाया है; उसके द्वारा धीमान पुरुष व्यवहारमार्गको जानकर,
शुद्धमार्गको भी जानता है
५२
आकाशके प्रदेशकी भाँति, किसी भी द्रव्यका एक परमाणु द्वारा व्यपित होनेयोग्य जो अंश उसे उस
द्रव्यका प्रदेश कहा जाता है द्रव्यसे पुद्गल एकप्रदेशी होने पर भी पर्यायसे स्कन्धपनेकी अपेक्षासे
पुद्गलको दो प्रदेशोंसे लेकर अनन्त प्रदेश भी सम्भव होते हैं
है मूर्तपुद्गल शेष पाँचों ही अमूर्तिक द्रव्य है
है जीव चेतन, शेष पाँचों चेतनागुणशून्य है ।।३७।।