Niyamsar (Hindi). Gatha: 39.

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णो खलु सहावठाणा णो माणवमाणभावठाणा वा
णो हरिसभावठाणा णो जीवस्साहरिस्सठाणा वा ।।9।।
न खलु स्वभावस्थानानि न मानापमानभावस्थानानि वा
न हर्षभावस्थानानि न जीवस्याहर्षस्थानानि वा ।।9।।
निर्विकल्पतत्त्वस्वरूपाख्यानमेतत
त्रिकालनिरुपाधिस्वरूपस्य शुद्धजीवास्तिकायस्य न खलु विभावस्वभावस्थानानि
प्रशस्ताप्रशस्तसमस्तमोहरागद्वेषाभावान्न च मानापमानहेतुभूतकर्मोदयस्थानानि न खलु शुभ-
परिणतेरभावाच्छुभकर्म, शुभकर्माभावान्न संसारसुखं, संसारसुखस्याभावान्न हर्षस्थानानि
चाशुभपरिणतेरभावादशुभकर्म, अशुभकर्माभावान्न दुःखं, दुःखाभावान्न चाहर्षस्थानानि चेति
कहानजैनशास्त्रमाला ]शुद्धभाव अधिकार[ ७९
गाथा : ३९ अन्वयार्थ :[जीवस्य ] जीवको [खलु ] वास्तवमें [न
स्वभावस्थानानि ] स्वभावस्थान (विभावस्वभावके स्थान) नहीं हैं, [न
मानापमानभावस्थानानि वा ] मानापमानभावके स्थान नहीं हैं, [न हर्षभावस्थानानि ]
हर्षभावके स्थान नहीं हैं [वा ] या [न अहर्षस्थानानि ] अहर्षके स्थान नहीं हैं
टीका :यह, निर्विकल्प तत्त्वके स्वरूपका कथन है
त्रिकाल - निरुपाधि जिसका स्वरूप है ऐसे शुद्ध जीवास्तिकायको वास्तवमें
विभावस्वभावस्थान (विभावरूप स्वभावके स्थान) नहीं हैं; (शुद्ध जीवास्तिकायको)
प्रशस्त या अप्रशस्त समस्त मोह - राग - द्वेषका अभाव होनेसे मान - अपमानके हेतुभूत
कर्मोदयके स्थान नहीं हैं; (शुद्ध जीवास्तिकायको) शुभ परिणतिका अभाव होनेसे शुभ
कर्म नहीं है, शुभ कर्मका अभाव होनेसे संसारसुख नहीं है, संसारसुखका अभाव
होनेसे हर्षस्थान नहीं हैं; और (शुद्ध जीवास्तिकायको) अशुभ परिणतिका अभाव
होनेसे अशुभ कर्म नहीं है, अशुभ कर्मका अभाव होनेसे दुःख नहीं है, दुःखका
अभाव होनेसे अहर्षस्थान नहीं हैं
मानापमान, स्वभावके नहिं स्थान होते जीवके
होते न हर्षस्थान भी, नहिं स्थान और अहर्षके ।।३९।।