भेदाद्दर्शनानि त्रीणि, कालकरणोपदेशोपशमप्रायोग्यताभेदाल्लब्धयः पञ्च, वेदकसम्यक्त्वं,
वेदकचारित्रं, संयमासंयमपरिणतिश्चेति । औदयिकभावस्य नारकतिर्यङ्मनुष्यदेवभेदाद्
शुक्लपद्मपीतकापोतनीलकृष्णभेदाल्लेश्याः षट् च भवन्ति । पारिणामिकस्य जीवत्व-
क्षायोपशमिकभावके अठारह भेद इसप्रकार हैं : मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान ऐसे ज्ञान चार; कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान और विभङ्गज्ञान ऐसे भेदोंके कारण अज्ञान तीन; चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन ऐसे भेदोंके कारण दर्शन तीन; काललब्धि, करणलब्धि, उपदेशलब्धि, उपशमलब्धि और प्रायोग्यतालब्धि ऐसे भेदोंके कारण लब्धि पाँच; वेदकसम्यक्त्व; वेदकचारित्र; और संयमासंयमपरिणति
औदयिकभावके इक्कीस भेद इसप्रकार हैं : नारकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति ऐसे भेदोंके कारण गति चार; क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय ऐसे भेदोंके कारण कषाय चार; स्त्रीलिंग, पुंलिंग और नपुंसकलिंग ऐसे भेदोंके कारण लिंग तीन; सामान्यसंग्रहनयकी अपेक्षासे मिथ्यादर्शन एक, अज्ञान एक और असंयमता एक; असिद्धत्व एक; शुक्ललेश्या, पद्मलेश्या, पीतलेश्या, कापोतलेश्या, नीललेश्या और कृष्णलेश्या ऐसे भेदोंके कारण लेश्या छह
पारिणामिकभावके तीन भेद इसप्रकार हैं : जीवत्वपारिणामिक, भव्यत्वपारिणामिक और अभव्यत्वपारिणामिक । यह जीवत्वपारिणामिकभाव भव्योंको तथा अभव्योंको समान होता है; भव्यत्वपारिणामिकभाव भव्योंको ही होता है; अभव्यत्वपारिणामिकभाव अभव्योंको ही होता है ।