न क्षायिकभावस्थानानि न क्षयोपशमस्वभावस्थानानि वा ।
औदयिकभावस्थानानि नोपशमस्वभावस्थानानि वा ।।४१।।
चतुर्णां विभावस्वभावानां स्वरूपकथनद्वारेण पंचमभावस्वरूपाख्यानमेतत् ।
कर्मणां क्षये भवः क्षायिकभावः । कर्मणां क्षयोपशमे भवः क्षायोपशमिकभावः ।
कर्मणामुदये भवः औदयिकभावः । कर्मणामुपशमे भवः औपशमिक भावः । सकलकर्मोपाधि-
विनिर्मुक्त : परिणामे भवः पारिणामिकभावः । एषु पंचसु तावदौपशमिकभावो द्विविधः,
क्षायिकभावश्च नवविधः, क्षायोपशमिकभावोऽष्टादशभेदः, औदयिकभाव एकविंशतिभेदः,
पारिणामिकभावस्त्रिभेदः । अथौपशमिकभावस्य उपशमसम्यक्त्वम् उपशमचारित्रम् च ।
क्षायिकभावस्य क्षायिकसम्यक्त्वं, यथाख्यातचारित्रं, केवलज्ञानं केवलदर्शनं च, अन्तराय-
कहानजैनशास्त्रमाला ]शुद्धभाव अधिकार[ ८३
गाथा : ४१ अन्वयार्थ : — [न क्षायिकभावस्थानानि ] जीवको क्षायिकभावके
स्थान नहीं हैं, [न क्षयोपशमस्वभावस्थानानि वा ] क्षयोपशमस्वभावके स्थान नहीं हैं,
[औदयिकभावस्थानानि ] औदयिकभावके स्थान नहीं हैं [वा ] अथवा [न
उपशमस्वभावस्थानानि ] उपशमस्वभावके स्थान नहीं हैं ।
टीका : — चार विभावस्वभावोंके स्वरूपकथन द्वारा पंचमभावके स्वरूपका यह
कथन है ।
१कर्मोंका क्षय होनेपर जो भाव हो वह क्षायिकभाव है । कर्मोंका क्षयोपशम होनेपर
जो भाव हो वह क्षायोपशमिकभाव है । कर्मोंका उदय होनेपर जो भाव हो वह औदयिकभाव
है । कर्मोंका उपशम होनेपर जो भाव हो वह औपशमिकभाव है । सकल कर्मोपाधिसे विमुक्त
ऐसा, परिणामसे जो भाव हो वह पारिणामिकभाव है ।
इन पाँच भावोंमें, औपशमिकभावके दो भेद हैं, क्षायिकभावके नौ भेद हैं,
क्षायोपशमिकभावके अठारह भेद हैं, औदयिकभावके इक्कीस भेद हैं, पारिणामिकभावके
तीन भेद हैं ।
अब, औपशमिकभावके दो भेद इसप्रकार हैं : उपशमसम्यक्त्व और उपशमचारित्र ।
क्षायिकभावके नौ भेद इसप्रकार हैं : क्षायिकसम्यक्त्व, यथाख्यातचारित्र, केवलज्ञान
१कर्मोंका क्षय होनेपर = कर्मोंके क्षयमें; कर्मक्षयके सद्भावमें । [व्यवहारसे कर्मक्षयकी अपेक्षा जीवके
जिस भावमें आये वह क्षायिकभाव है ।]