Niyamsar (Hindi).

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भ्रमणं न भवति नित्यशुद्धचिदानन्दरूपस्य कारणपरमात्मस्वरूपस्य द्रव्यभाव-
कर्मग्रहणयोग्यविभावपरिणतेरभावान्न जातिजरामरणरोगशोकाश्च चतुर्गतिजीवानां कुल-
योनिविकल्प इह नास्ति इत्युच्यते तद्यथापृथ्वीकायिकजीवानां द्वाविंशति-
लक्षकोटिकुलानि, अप्कायिकजीवानां सप्तलक्षकोटिकुलानि, तेजस्कायिकजीवानां त्रिलक्ष-
कोटिकुलानि, वायुकायिकजीवानां सप्तलक्षकोटिकुलानि, वनस्पतिकायिकजीवानाम्
अष्टोत्तरविंशतिलक्षकोटिकुलानि, द्वीन्द्रियजीवानां सप्तलक्षकोटिकुलानि, त्रीन्द्रियजीवानाम्
अष्टलक्षकोटिकुलानि, चतुरिन्द्रियजीवानां नवलक्षकोटिकुलानि, पंचेन्द्रियेषु जलचराणां
सार्धद्वादशलक्षकोटिकुलानि, आकाशचरजीवानां द्वादशलक्षकोटिकुलानि, चतुष्पदजीवानां
दशलक्षकोटिकुलानि, सरीसृपानां नवलक्षकोटिकुलानि, नारकाणां पंचविंशतिलक्ष-
कोटिकुलानि, मनुष्याणां द्वादशलक्षकोटिकुलानि, देवानां षड्विंशतिलक्षकोटिकुलानि
सर्वाणि सार्धसप्तनवत्यग्रशतकोटिलक्षाणि १9७५०००००००००००
कहानजैनशास्त्रमाला ]शुद्धभाव अधिकार[ ८७
और देवत्वस्वरूप चार गतियोंका परिभ्रमण नहीं है
नित्य-शुद्ध चिदानन्दरूप कारणपरमात्मस्वरूप जीवको द्रव्यकर्म तथा भावकर्मके
ग्रहणके योग्य विभावपरिणतिका अभाव होनेसे जन्म, जरा, मरण, रोग और शोक नहीं है
चतुर्गति (चार गतिके) जीवोंके कुल तथा योनिके भेद जीवमें नहीं हैं ऐसा (अब)
कहा जाता है वह इसप्रकार :
पृथ्वीकायिक जीवोंके बाईस लाख करोड़ कुल हैं; अप्कायिक जीवोंके सात
लाख करोड़ कुल हैं; तेजकायिक जीवोंके तीन लाख करोड़ कुल हैं; वायुकायिक
जीवोंके सात लाख करोड़ कुल हैं; वनस्पतिकायिक जीवोंके अट्ठाईस लाख करोड़ कुल
हैं; द्वीन्द्रिय जीवोंके सात लाख करोड़ कुल हैं; त्रीन्द्रिय जीवोंके आठ लाख करोड़ कुल
हैं; चतुरिन्द्रिय जीवोंके नौ लाख करोड़ कुल हैं; पंचेन्द्रिय जीवोंमें जलचर जीवोंके साढ़े
बारह लाख करोड़ कुल हैं; खेचर जीवोंके बारह लाख करोड़ कुल हैं; चार पैर वाले
जीवोंके दस लाख करोड़ कुल हैं; सर्पादिक पेटसे चलनेवाले जीवोंके नौ लाख करोड़
कुल हैं; नारकोंके पच्चीस लाख करोड़ कुल हैं; मनुष्योंके बारह लाख करोड़ कुल हैं
और देवोंके छब्बीस लाख करोड़ कुल हैं
कुल मिलकर एक सौ साढ़े सत्तानवे लाख
करोड़ (१९७५०००,०००,०००,००) कुल हैं