Niyamsar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]शुद्धभाव अधिकार[ ८९
(मालिनी)
‘‘सकलमपि विहायाह्नाय चिच्छक्ति रिक्तं
स्फु टतरमवगाह्य स्वं च चिच्छक्ति मात्रम्
इममुपरि चरंतं चारु विश्वस्य साक्षात
कलयतु परमात्मात्मानमात्मन्यनन्तम् ।।’’
(अनुष्टुभ्)
‘‘चिच्छक्ति व्याप्तसर्वस्वसारो जीव इयानयम्
अतोऽतिरिक्ताः सर्वेऽपि भावाः पौद्गलिका अमी ।।’’
तथा हि
(मालिनी)
अनवरतमखण्डज्ञानसद्भावनात्मा
व्रजति न च विकल्पं संसृतेर्घोररूपम्
अतुलमनघमात्मा निर्विकल्पः समाधिः
परपरिणतिदूरं याति चिन्मात्रमेषः
।।६०।।

हैंऐसा भगवान सूत्रकर्ताका (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवका) अभिप्राय है

इसीप्रकार (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचन्द्रसूरिने (श्री समयसारकी आत्मख्याति नामक टीकामें ३५३६वें दो श्लोकों द्वारा) कहा है कि :

‘‘[श्लोेकार्थ :] चित्शक्तिसे रहित अन्य सकल भावोंको मूलसे छोड़कर और चित्शक्तिमात्र ऐसे निज आत्माका अति स्फु टरूपसे अवगाहन करके, आत्मा समस्त विश्वके ऊ पर सुन्दरतासे प्रवर्तमान ऐसे इस केवल (एक) अविनाशी आत्माको आत्मामें साक्षात् अनुभव करो ’’

‘‘[श्लोेकार्थ :] चैतन्यशक्तिसे व्याप्त जिसका सर्वस्व-सार है ऐसा यह जीव इतना ही मात्र है; इस चित्शक्तिसे शून्य जो यह भाव हैं वे सब पौद्गलिक हैं ’’

और (४२वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज दो श्लोक कहते हैं ) :

[श्लोेकार्थ :] सततरूपसे अखण्ड ज्ञानकी सद्भावनावाला आत्मा (अर्थात् ‘मैं अखण्ड ज्ञान हूँ’ ऐसी सच्ची भावना जिसे निरंतर वर्तती है वह आत्मा) संसारके घोर