Niyamsar (Hindi). Adhikar-4 : VyavahAr Charitra Adhikar Gatha: 56 VyavhAr Charitra Adhikar.

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व्यवहारचारित्र अधिकार
अथेदानीं व्यवहारचारित्राधिकार उच्यते
कुलजोणिजीवमग्गणठाणाइसु जाणिऊण जीवाणं
तस्सारंभणियत्तणपरिणामो होइ पढमवदं ।।५६।।
कुलयोनिजीवमार्गणास्थानादिषु ज्ञात्वा जीवानाम्
तस्यारम्भनिवृत्तिपरिणामो भवति प्रथमव्रतम् ।।५६।।
अहिंसाव्रतस्वरूपाख्यानमेतत
कुलविकल्पो योनिविकल्पश्च जीवमार्गणास्थानविकल्पाश्च प्रागेव प्रतिपादिताः अत्र
पुनरुक्ति दोषभयान्न प्रतिपादिताः तत्रैव तेषां भेदान् बुद्ध्वा तद्रक्षापरिणतिरेव भवत्यहिंसा
अब व्यवहारचारित्र अधिकार कहा जाता है
गाथा : ५६ अन्वयार्थ :[जीवानाम् ] जीवोंके [कुलयोनिजीवमार्गणास्थानादिषु ]
कुल, योनि, जीवस्थान, मार्गणास्थान आदि [ज्ञात्वा ] जानकर [तस्य ] उनके [आरम्भनिवृत्ति-
परिणामः ]
आरम्भसे निवृत्तिरूप परिणाम वह [प्रथमव्रतम् ] पहला व्रत [भवति ] है
टीका :यह, अहिंसाव्रतके स्वरूपका कथन है
कुलभेद, योनिभेद, जीवस्थानके भेद और मार्गणास्थानके भेद पहले ही (४२वीं
गाथाकी टीकामें ही) प्रतिपादित किये गये हैं; यहाँ पुनरुक्तिदोषके भयसे प्रतिपादित
नहीं किये हैं
वहाँ कहे हुए उनके भेदोंको जानकर उनकी रक्षारूप परिणति ही अहिंसा
रे जानकर कुलयोनि, जीवस्थान मार्गण जीवके
आरम्भ इनके से विरत हो प्रथमव्रत कहते उसे ।।५६।।