Niyamsar (Hindi). Adhikar-5 : Parmarth Pratikraman Adhikar.

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परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार
(वंशस्थ)
नमोऽस्तु ते संयमबोधमूर्तये
स्मरेभकुंभस्थलभेदनाय वै
विनेयपंकेजविकाशभानवे
विराजते माधवसेनसूरये
।।१०८।।

अथ सकलव्यावहारिकचारित्रतत्फलप्राप्तिप्रतिपक्षशुद्धनिश्चयनयात्मकपरमचारित्र- प्रतिपादनपरायणपरमार्थप्रतिक्रमणाधिकारः कथ्यते तत्रादौ तावत् पंचरत्नस्वरूपमुच्यते तद्यथा

अथ पंचरत्नावतारः

[अधिकारके प्रारम्भमें टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव श्री माधवसेन आचार्यदेवको श्लोक द्वारा नमस्कार करते हैं : ]

[श्लोकार्थ : ] संयम और ज्ञानकी मूर्ति, कामरूपी हाथीके कुम्भस्थलको भेदनेवाले तथा शिष्यरूपी कमलको विकसित करनेमें सूर्य समानऐसे हे विराजमान (शोभायमान) माधवसेनसूरि ! आपको नमस्कार हो १०८

अब, सकल व्यावहारिक चारित्रसे और उसके फलकी प्राप्तिसे प्रतिपक्ष ऐसा जो शुद्धनिश्चयनयात्मक परम चारित्र उसका प्रतिपादन करनेवाला परमार्थ - प्रतिक्रमण अधिकार कहा जाता है वहाँ प्रारम्भमें पंचरत्नका स्वरूप कहते हैं वह इसप्रकार :

अब पाँच रत्नोंका अवतरण किया जाता है :