गाथा : ७७-८१ अन्वयार्थ : — [अहं ] मैं [नारकभावः ] नारकपर्याय, [तिर्यङ्मानुषदेवपर्यायः ] तिर्यंचपर्याय, मनुष्यपर्याय अथवा देवपर्याय [न ] नहीं हूँ; [कर्ता न हि कारयिता ] उनका (मैं) कर्ता नहीं हूँ, कारयिता ( – करानेवाला) नहीं हूँ, [कर्तॄणाम् अनुमंता न एव ] कर्ताका अनुमोदक नहीं हूँ ।
[अहं मार्गणास्थानानि न ] मैं मार्गणास्थान नहीं हूँ, [अहं ] मैं [गुणस्थानानि न ] गुणस्थान नहीं हूँ [जीवस्थानानि ] जीवस्थान [न ] नहीं हूँ; [कर्ता न हि कारयिता ] उनका मैं कर्ता नहीं हूँ, कारयिता नहीं हूँ, [कर्तॄणाम् अनुमंता न एव ] कर्ताका अनुमोदक नहीं हूँ ।
[न अहं बालः वृद्धः ] मैं बाल नहीं हूँ, वृद्ध नहीं हूँ, [न च एव तरुणः ] तथा तरुण नहीं हूँ; [तेषां कारणं न ] उनका (मैं) कारण नहीं हूँ; [कर्ता न हि कारयिता ] उनका (मैं) कर्ता नहीं हूँ, कारयिता नहीं हूँ, [कर्तॄणाम् अनुमंता न एव ] कर्ताका अनुमोदक नहीं हूँ ।
[न अहं रागः द्वेषः ] मैं राग नहीं हूँ, द्वेष नहीं हूँ, [न च एव मोहः ] तथा मोह नहीं हूँ; [तेषां कारणं न ] उनका (मैं) कारण नहीं हूँ, [कर्ता न हि कारयिता ] उनका (मैं) कर्ता नहीं हूँ, कारयिता नहीं हूँ; [कर्तॄणाम् अनुमंता न एव ] कर्ताका अनुमोदक नहीं हूँ ।
[न अहं क्रोधः मानः ] मैं क्रोध नहीं हूँ, मान नहीं हूँ, [न च एव अहं माया ] तथा मैं माया नहीं हूँ, [लोभः न भवामि ] लोभ नहीं हूँ; [कर्ता न हि कारयिता ] उनका (मैं) कर्ता नहीं हूँ, कारयिता नहीं हूँ, [कर्तॄणाम् अनुमंता न एव ] कर्ताका अनुमोदक नहीं हूँ ।