परिग्रहत्वं व्यवहारतो भवति अत एव तस्य नारकायुष्कहेतुभूतनिखिलमोहरागद्वेषा विद्यन्ते, न च मम शुद्धनिश्चयबलेन शुद्धजीवास्तिकायस्य । तिर्यक्पर्यायप्रायोग्यमायामिश्राशुभकर्मा- भावात्सदा तिर्यक्पर्यायकर्तृत्वविहीनोऽहम् । मनुष्यनामकर्मप्रायोग्यद्रव्यभावकर्माभावान्न मे मनुष्यपर्यायः शुद्धनिश्चयतो समस्तीति । निश्चयेन देवनामधेयाधारदेवपर्याययोग्यसुरस- सुगंधस्वभावात्मकपुद्गलद्रव्यसम्बन्धाभावान्न मे देवपर्यायः इति ।
चतुर्दशभेदभिन्नानि मार्गणास्थानानि तथाविधभेदविभिन्नानि जीवस्थानानि गुण- स्थानानि वा शुद्धनिश्चयनयतः परमभावस्वभावस्य न विद्यन्ते ।
मनुष्यतिर्यक्पर्यायकायवयःकृतविकारसमुपजनितबालयौवनस्थविरवृद्धावस्थाद्यनेक- स्थूलकृशविविधभेदाः शुद्धनिश्चयनयाभिप्रायेण न मे सन्ति ।
बहु आरम्भ तथा परिग्रहका अभाव होनेके कारण मैं नारकपर्याय नहीं हूँ । संसारी जीवको बहु आरम्भ - परिग्रह व्यवहारसे होता है और इसीलिये उसे नारक-आयुके हेतुभूत समस्त मोहरागद्वेष होते हैं, परन्तु मुझे — शुद्धनिश्चयके बलसे शुद्धजीवास्तिकायको — वे नहीं हैं । तिर्यञ्चपर्यायके योग्य मायामिश्रित अशुभ कर्मका अभाव होनेके कारण मैं सदा तिर्यञ्चपर्यायके कर्तृत्व विहीन हूँ । मनुष्यनामकर्मके योग्य द्रव्यकर्म तथा भावकर्मका अभाव होनेके कारण मुझे मनुष्यपर्याय शुद्धनिश्चयसे नहीं है । ‘देव’ ऐसे नामका आधार जो देवपर्याय उसके योग्य सुरस - सुगन्धस्वभाववाले पुद्गलद्रव्यके सम्बन्धका अभाव होनेके कारण निश्चयसे मुझे देवपर्याय नहीं है ।
चौदह भेदवाले मार्गणास्थान तथा उतने (चौदह) भेदवाले जीवस्थान या गुण- स्थान शुद्धनिश्चयनयसे परमभावस्वभाववालेको ( – परमभाव जिसका स्वभाव है ऐसे मुझे) नहीं हैं ।
मनुष्य और तिर्यञ्चपर्यायकी कायाके, वयकृत विकारसे ( – परिवर्तनसे) उत्पन्न होनेवाले बाल - युवा - स्थविर - वृद्धावस्थादिरूप अनेक स्थूल - कृश विविध भेद शुद्ध- निश्चयनयके अभिप्रायसे मेरे नहीं हैं ।