Niyamsar (Hindi).

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सत्तावबोधपरमचैतन्यसुखानुभूतिनिरतविशिष्टात्मतत्त्वग्राहकशुद्धद्रव्यार्थिकनयबलेन मे
सकलमोहरागद्वेषा न विद्यन्ते
सहजनिश्चयनयतः सदा निरावरणात्मकस्य शुद्धावबोधरूपस्य सहजचिच्छक्ति मयस्य
सहजद्रक्स्फू र्तिपरिपूर्णमूर्तेः स्वरूपाविचलस्थितिरूपसहजयथाख्यातचारित्रस्य न मे निखिल-
संसृतिक्लेशहेतवः क्रोधमानमायालोभाः स्युः
अथामीषां विविधविकल्पाकुलानां विभावपर्यायाणां निश्चयतो नाहं कर्ता, न कारयिता
वा भवामि, न चानुमंता वा कर्तॄणां पुद्गलकर्मणामिति
नाहं नारकपर्यायं कुर्वे, सहजचिद्विलासात्मकमात्मानमेव संचिंतये नाहं तिर्यक्पर्यायं
कुर्वे, सहजचिद्विलासात्मकमात्मानमेव संचिंतये नाहं मनुष्यपर्यायं कुर्वे, सहजचिद्विलासा-
त्मकमात्मानमेव संचिंतये नाहं देवपर्यायं कुर्वे, सहजचिद्विलासात्मकमात्मानमेव संचिंतये
नाहं चतुर्दशमार्गणास्थानभेदं कुर्वे, सहजचिद्विलासात्मकमात्मानमेव संचिंतये नाहं
मिथ्याद्रष्टयादिगुणस्थानभेदं कुर्वे, सहजचिद्विलासात्मकमात्मानमेव संचिंतये नाह-
सत्ता, अवबोध, परमचैतन्य और सुखकी अनुभूतिमें लीन ऐसे विशिष्ट आत्मतत्त्वको
ग्रहण करनेवाले शुद्धद्रव्यार्थिकनयके बलसे मेरे सकल मोहरागद्वेष नहीं हैं
सहज निश्चयनयसे (१) सदा निरावरणस्वरूप, (२) शुद्धज्ञानरूप, (३) सहज
चित्शक्तिमय, (४) सहज दर्शनके स्फु रणसे परिपूर्ण मूर्ति (जिसकी मूर्ति अर्थात्
स्वरूप सहज दर्शनके स्फु रणसे परिपूर्ण है ऐसे) और (५) स्वरूपमें अविचल स्थितिरूप सहज
यथाख्यात चारित्रवाले ऐसे मुझे समस्त संसारक्लेशके हेतु क्रोध
- मान - माया - लोभ नहीं हैं
अब, इन (उपरोक्त) विविध विकल्पोंसे (भेदोंसे) भरी हुई विभावपर्यायोंका निश्चयसे
मैं कर्ता नहीं हूँ, कारयिता नहीं हूँ और पुद्गलकर्मरूप कर्ताका (विभावपर्यायोंके कर्ता जो
पुद्गलकर्म उनका) अनुमोदक नहीं हूँ (इसप्रकार वर्णन किया जाता है )
मैं नारकपर्यायको नहीं करता, सहज चैतन्यके विलासस्वरूप आत्माको ही भाता हूँ
मैं तिर्यंचपर्यायको नहीं करता, सहज चैतन्यके विलासस्वरूप आत्माको ही भाता हूँ मैं
मनुष्यपर्यायको नहीं करता, सहज चैतन्यके विलासस्वरूप आत्माको ही भाता हूँ मैं
देवपर्यायको नहीं करता, सहज चैतन्यके विलासस्वरूप आत्माको ही भाता हूँ
मैं चौदह मार्गणास्थानके भेदोंको नहीं करता, सहज चैतन्यके विलासस्वरूप आत्माको
ही भाता हूँ मैं मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानभेदोंको नहीं करता, सहज चैतन्यके विलासस्वरूप
कहानजैनशास्त्रमाला ]परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार[ १५३