Niyamsar (Hindi).

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१६० ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
उक्तं हि समयसारव्याख्यायां च
(मालिनी)
‘‘अनवरतमनंतैर्बध्यते सापराधः
स्पृशति निरपराधो बंधनं नैव जातु
नियतमयमशुद्धं स्वं भजन्सापराधो
भवति निरपराधः साधु शुद्धात्मसेवी
।।’’
तथा हि
(मालिनी)
अपगतपरमात्मध्यानसंभावनात्मा
नियतमिह भवार्तः सापराधः स्मृतः सः
अनवरतमखंडाद्वैतचिद्भावयुक्तो
भवति निरपराधः कर्मसंन्यासदक्षः
।।११२।।

श्री समयसारकी (अमृतचन्द्राचार्यदेवकृत आत्मख्याति नामक) टीकामें भी (१८७वें श्लोक द्वारा) कहा है कि :

‘‘[श्लोकार्थ : ] सापराध आत्मा निरंतर अनन्त (पुद्गलपरमाणुरूप) कर्मोंसे बँधता है; निरपराध आत्मा बन्धनको कदापि स्पर्श ही नहीं करता जो सापराध आत्मा है वह तो नियमसे अपनेको अशुद्ध सेवन करता हुआ सापराध है; निरपराध आत्मा तो भलीभाँति शुद्ध आत्माका सेवन करनेवाला होता है ’’

और (इस ८४वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक कहते हैं ) :

[श्लोकार्थ : ] इस लोकमें जो जीव परमात्मध्यानकी संभावना रहित है (अर्थात् जो जीव परमात्माके ध्यानरूप परिणमनसे रहित हैपरमात्मध्यानरूप परिणमित नहीं हुआ है ) वह भवार्त जीव नियमसे सापराध माना गया है; जो जीव निरंतर अखण्ड - अद्वैत - चैतन्यभावसे युक्त है वह कर्मसंन्यासदक्ष (कर्मत्यागमें निपुण) जीव निरपराध है ११२