मनाचारं मुक्त्वा ह्याचारे सहजचिद्विलासलक्षणनिरंजने निजपरमात्मतत्त्वभावनास्वरूपे यः सहजवैराग्यभावनापरिणतः स्थिरभावं करोति, स परमतपोधन एव प्रतिक्रमणस्वरूप इत्युच्यते, यस्मात् परमसमरसीभावनापरिणतः सहजनिश्चयप्रतिक्रमणमयो भवतीति ।
गाथा : ८५ अन्वयार्थ : — [यः तु ] जो (जीव) [अनाचारं ] अनाचार [मुक्त्वा ] छोड़कर [आचारे ] आचारमें [स्थिरभावम् ] स्थिरभाव [करोति ] करता है, [सः ] वह (जीव) [प्रतिक्रमणम् ] प्रतिक्रमण [उच्यते ] कहलाता है, [यस्मात् ] कारण कि वह [प्रतिक्रमणमयः भवेत् ] प्रतिक्रमणमय है ।
टीका : — यहाँ (इस गाथामें) निश्चयचरणात्मक परमोपेक्षासंयमके धारण करनेवालेको निश्चयप्रतिक्रमणका स्वरूप होता है ऐसा कहा है ।
नियमसे परमोपेक्षासंयमवालेको शुद्ध आत्माकी आराधनाके अतिरिक्त सब अनाचार है; इसीलिये सर्व अनाचार छोड़कर सहजचिद्विलासलक्षण निरंजन निज परमात्मतत्त्वकी भावनास्वरूप ❃
परम समरसीभावनारूपसे परिणमित हुआ सहज निश्चयप्रतिक्रमणमय है ।