Niyamsar (Hindi). Gatha: 92.

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उत्तमअट्ठं आदा तम्हि ठिदा हणदि मुणिवरा कम्मं
तम्हा दु झाणमेव हि उत्तमअट्ठस्स पडिकमणं ।।9।।
उत्तमार्थ आत्मा तस्मिन् स्थिता घ्नन्ति मुनिवराः कर्म
तस्मात्तु ध्यानमेव हि उत्तमार्थस्य प्रतिक्रमणम् ।।9।।
अत्र निश्चयोत्तमार्थप्रतिक्रमणस्वरूपमुक्त म्
इह हि जिनेश्वरमार्गे मुनीनां सल्लेखनासमये हि द्विचत्वारिंशद्भिराचार्यैर्दत्तोत्तमार्थ-
प्रतिक्रमणाभिधानेन देहत्यागो धर्मो व्यवहारेण निश्चयेन नवार्थेषूत्तमार्थो ह्यात्मा तस्मिन्
सच्चिदानंदमयकारणसमयसारस्वरूपे तिष्ठन्ति ये तपोधनास्ते नित्यमरणभीरवः, अत एव
कर्मविनाशं कुर्वन्ति
तस्मादध्यात्मभाषयोक्त भेदकरणध्यानध्येयविकल्पविरहितनिरवशेषेणान्त-
शुद्ध आत्मतत्त्वमें नियत (शुद्धात्मतत्त्वपरायण) ऐसा जो एक निजज्ञान, दूसरा श्रद्धान
और फि र दूसरा चारित्र उसका आश्रय करता है १२२
गाथा : ९२ अन्वयार्थ :[उत्तमार्थः ]ंउत्तमार्थ (उत्तम पदार्थ)
[आत्मा ] आत्मा है; [तस्मिन् स्थिताः ] उसमें स्थित [मुनिवराः ] मुनिवर [कर्म
घ्नन्ति ]
कर्मका घात करते हैं
[तस्मात् तु ] इसलिये [ध्यानम् एव ] ध्यान ही
[हि ] वास्तवमें [उत्तमार्थस्य ] उत्तमार्थका [प्रतिक्रमणम् ] प्रतिक्रमण है
टीका :यहाँ (इस गाथामें), निश्चय - उत्तमार्थप्रतिक्रमणका स्वरूप कहा
है
जिनेश्वरके मार्गमें मुनियोंकी सल्लेखनाके समय, ब्यालीस आचार्यों द्वारा,
जिसका नाम उत्तमार्थप्रतिक्रमण है वह दिया जानेके कारण, देहत्याग व्यवहारसे धर्म
है
निश्चयसेनव अर्थोंमें उत्तम अर्थ आत्मा है; सच्चिदानन्दमय कारणसमयसारस्वरूप
ऐसे उस आत्मामें जो तपोधन स्थित रहते हैं, वे तपोधन नित्य मरणभीरु हैं; इसीलिये
१७४ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
है जीव उत्तम अर्थ, मुनि तत्रस्थ हन्ता कर्मका
अतएव है बस ध्यान ही प्रतिक्रमण उत्तम अर्थका ।।९२।।