Niyamsar (Hindi). Gatha: 99.

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गाथा : ९९ अन्वयार्थ :[ममत्वं ] मैं ममत्वको [परिवर्जयामि ] छोड़ता हूँ
और [निर्ममत्वम् ] निर्ममत्वमें [उपस्थितः ] स्थित रहता हूँ; [आत्मा ] आत्मा [मे ] मेरा
[आलम्बनं च ] आलम्बन है [अवशेषं च ] और शेष [विसृजामि ] मैं छोड़ता हूँ
टीका :यहाँ सकल विभावके सन्न्यासकी (त्यागकी) विधि कही है
सुन्दर कामिनी, कांचन आदि समस्त परद्रव्य - गुण - पर्यायोंके प्रति ममकारको मैं
छोड़ता हूँ परमोपेक्षालक्षणसे लक्षित निर्ममकारात्मक आत्मामें स्थित रहकर तथा आत्माका
अवलम्बन लेकर, संसृतिरूपी स्त्रीके संभोगसे उत्पन्न सुख-दुःखादि अनेक विभावरूप
परिणतिको मैं परिहरता हूँ
इसीप्रकार (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचन्द्रसूरिने (श्री समयसारकी आत्मख्याति
नामक टीकामें १०४वें श्लोक द्वारा) कहा है कि :
ममत्तिं परिवज्जामि णिम्ममत्तिमुवट्ठिदो
आलंबणं च मे आदा अवसेसं च वोसरे ।।9 9।।
ममत्वं परिवर्जयामि निर्ममत्वमुपस्थितः
आलम्बनं च मे आत्मा अवशेषं च विसृजामि ।।9 9।।
अत्र सकलविभावसंन्यासविधिः प्रोक्त :
कमनीयकामिनीकांचनप्रभृतिसमस्तपरद्रव्यगुणपर्यायेषु ममकारं संत्यजामि परमो-
पेक्षालक्षणलक्षिते निर्ममकारात्मनि आत्मनि स्थित्वा ह्यात्मानमवलम्ब्य च संसृति-
पुरंध्रिकासंभोगसंभवसुखदुःखाद्यनेकविभावपरिणतिं परिहरामि
तथा चोक्तं श्रीमदमृतचंद्रसूरिभिः
कांचन = सुवर्ण; धन
निर्ममकारात्मक = निर्ममत्वमय; निर्ममत्वस्वरूप (निर्ममत्वका लक्षण परम उपेक्षा है )
संसृति = संसार
मैं त्याग ममता, निर्ममत्व स्वरूपमें स्थिति कर रहा
अवलम्ब मेरा आत्मा, अवशेष वारण कर रहा ।।९९।।
१९० ]नियमसार[ भगवानश्रीकुं दकुं द-