१ – जीव अधिकार
असाधारण मंगल और भगवान ग्रन्थकारकी
प्रतिज्ञा ................................................ १
मोक्षमार्ग और उसके फलके स्वरूप-
निरूपणकी सूचना ................................. २
स्वभावरत्नत्रयका स्वरूप ............................... ३
रत्नत्रयके भेदकारण तथा लक्षण सम्बन्धी
कथन................................................. ४
व्यवहार सम्यक्त्वका स्वरूप .......................... ५
अठारह दोषोंका स्वरूप................................ ६
तीर्थंकर परमदेवका स्वरूप ........................... ७
परमागमका स्वरूप ...................................... ८
छह द्रव्योंके पृथक् पृथक् नाम ...................... ९
उपयोगका लक्षण ...................................... १०
ज्ञानके भेद .............................................. ११
दर्शनोपयोगका स्वरूप ................................ १३
अशुद्ध दर्शनकी शुद्ध और अशुद्ध पर्यायकी
सूचना............................................... १४
स्वभावपर्यायें और विभावपर्यायें...................... १५
चारगतिका स्वरूप निरूपण......................... १६
कर्तृत्व-भोक्तृत्वके प्रकारका कथन................ १८
दोनों नयोंकी सफलता ................................ १९
२ – अजीव अधिकार
पुद्गलद्रव्यके भेदोंका कथन ........................ २०
विभावपुद्गलका स्वरूप ............................. २१
कारणपरमाणुद्रव्य और कार्यपरमाणुद्रव्यका
स्वरूप ............................................. २५
परमाणुका विशेष कथन ............................. २६
स्वभावपुद्गलका स्वरूप ............................. २७
पुद्गलपर्यायके स्वरूपका कथन ................... २८
पुद्गलद्रव्यके कथनका उपसंहार ................... २९
धर्म-अधर्म-आकाशका संक्षिप्त कथन ............. ३०
व्यवहारकालका स्वरूप और उसके
विविध भेद ....................................... ३१
मुख्य कालका स्वरूप................................ ३२
कालादि अमूर्त अचेतन द्रव्योंके स्वभावगुण-
पर्यायोंका कथन .................................. ३३
कालद्रव्यके अतिरिक्त पूर्वोक्त द्रव्य ही
पंचास्तिकाय हैं, तत्सम्बन्धी कथन ........... ३४
छह द्रव्योंके प्रदेशका लक्षण और उसके
सम्भवका प्रकार .................................. ३४
अजीवद्रव्य सम्बन्धी कथनका उपसंहार ........... ३७
३ – शुद्धभाव अधिकार
हेय और उपादेय तत्त्वके स्वरूपका कथन ...... ३८
निर्विकल्प तत्त्वके स्वरूपका कथन .............. ३९
प्रकृति आदि बंधस्थान तथा उदयके स्थानोंका
समूह जीवके नहीं है, तत्सम्बन्धी कथन.... ४०
विभावस्वभावोंके स्वरूप कथन द्वारा
पंचमभावके स्वरूपका कथन ................. ४१
शुद्ध जीवको समस्त संसारविकार नहीं
हैं – ऐसा निरूपण................................. ४२
शुद्ध आत्माको समस्त विभावोंका अभाव
है ऐसा कथन .................................... ४३
शुद्ध जीवका स्वरूप ................................. ४४
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विषयानुक्रमणिका
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विषय
गाथा
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