Niyamsar (Hindi).

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[ २० ]
विषय
गाथा
विषय
गाथा
कारणपरमात्माको समस्त पौद्गलिक विकार
सर्व साधुओंके स्वरूपका कथन ................... ७५
व्यवहारचारित्र-अधिकारका उपसंहार और
नहीं हैंऐसा कथन ............................. ४५
संसारी और मुक्त जीवोंमें अन्तर न
निश्चयचारित्रकी सूचना ........................... ७६
होनेका कथन ..................................... ४७
परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार
कार्यसमयसार और कारणसमयसारमें अन्तर
शुद्ध आत्माको सकल कर्तृत्वके अभाव
न होनेका कथन ................................. ४८
सम्बन्धी कथन ................................... ७७
निश्चय और व्यवहारनयकी उपादेयताका
भेदविज्ञान द्वारा क्रमशः निश्चय-चारित्र होता
प्रकाशन ............................................ ४९
है तत्सम्बन्धी कथन ............................ ८२
हेय-उपादेय अथवा त्याग-ग्रहणका स्वरूप
वचनमय प्रतिक्रमण नामक सूत्रसमुदायका निरास.८३
आत्म-आराधनामें वर्तते हुए जीवको ही
रत्नत्रयका स्वरूप ................................ ५१
व्यवहारचारित्र अधिकार
प्रतिक्रमणस्वरूप कहा है, तत्सम्बन्धी
कथन............................................... ८४

अहिंसाव्रतका स्वरूप ................................. ५६ सत्यव्रतका स्वरूप .................................... ५७ अचौर्यव्रतका स्वरूप .................................. ५८ ब्रह्मचर्यव्रतका स्वरूप ................................. ५९ परिग्रह-परित्यागव्रतका स्वरूप ...................... ६० ईर्यासमितिका स्वरूप ................................. ६१ भाषासमितिका स्वरूप ................................ ६२ एषणासमितिका स्वरूप .............................. ६३ आदाननिक्षेपणसमितिका स्वरूप .................... ६४ प्रतिष्ठापनसमितिका स्वरूप........................... ६५ व्यवहार मनोगुप्तिका स्वरूप .......................... ६६ वचनगुप्तिका स्वरूप ................................... ६७ कायगुप्तिका स्वरूप ................................... ६८ निश्चयमनो-वचनगुप्तिका स्वरूप...................... ६९ निश्चयकायगुप्तिका स्वरूप ............................ ७० भगवान अर्हत् परमेश्वरका स्वरूप .................. ७१ भगवन्त सिद्धपरमेष्ठियोंका स्वरूप .................. ७२ भगवन्त आचार्यका स्वरूप .......................... ७३ अध्यापक नामक परमगुरुका स्वरूप .............. ७४

परमोपेक्षासंयमधरको निश्चयप्रतिक्रमणका स्वरूप
होता है, तत्सम्बन्धी निरूपण ................. ८५
उन्मार्गके परित्याग और सर्वज्ञवीतरागमार्गके
स्वीकार सम्बन्धी वर्णन ......................... ८६
निःशल्यभावरूप परिणत महातपोधन ही निश्चय-
प्रतिक्रमणस्वरूप है, तत्सम्बन्धी कथन ..... ८७
त्रिगुप्तिगुप्त ऐसे परम तपोधनको निश्चयचारित्र
होनेका कथन ..................................... ८८
ध्यानके भेदोंका स्वरूप .............................. ८९
आसन्नभव्य और अनासन्नभव्य जीवके
पूर्वापर परिणामका स्वरूप..................... ९०
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रका सम्पूर्ण स्वीकार करने से
तथा मिथ्यादर्शनचारित्रका सम्पूर्ण त्याग करने
से मुमुक्षुको निश्चयप्रतिक्रमण होता है,
तत्सम्बन्धी कथन ................................ ९१
निश्चय उत्तमार्थप्रतिक्रमणका स्वरूप................ ९२
ध्यान एक उपादेय है
ऐसा कथन ............ ९३