[ २१ ]
विषय
गाथा
विषय
गाथा
व्यवहार प्रतिक्रमणकी सफलता कब कही
निश्चयप्रायश्चित्त समस्त आचरणोंमें परम आचरण
जाती है, तत्सम्बन्धी कथन .................... ९४
है, तत्सम्बन्धी कथन ......................... ११७
शुद्ध कारणपरमात्मतत्त्वमें अन्तर्मुख रहकर
६ – निश्चय-प्रत्याख्यान अधिकार
जो प्रतपन – सो तप है, और वह तप प्रायश्चित्त
निश्चयनयके प्रत्याख्यानका स्वरूप .................. ९५ अनन्तचतुष्टयात्मक निज आत्माके ध्यानका
है – तत्सम्बन्धी कथन .......................... ११८
निश्चयधर्मध्यान ही सर्वभावोंका अभाव करनेमें
उपदेश ............................................. ९६
समर्थ है — ऐसा कथन ....................... ११९
परमभावनाके सन्मुख है – ऐसे ज्ञानीको सीख ..... ९७
शुद्धनिश्चयनियमका स्वरूप ......................... १२०
निश्चयकायोत्सर्गका स्वरूप ......................... १२१
बन्धरहित आत्माको भाने सम्बन्धी सीख .......... ९८ सकल विभावके संन्यासकी विधि ................. ९९ सर्वत्र आत्मा उपादेय है – ऐसा कथन ............ १००
९ – परम-समाधि अधिकार
परम समाधिका स्वरूप ............................ १२२
समता बिना द्रव्यलिंगधारी श्रमणाभासको
संसारावस्था और मुक्तिमें जीव निःसहाय
है — ऐसा कथन................................ १०१
किंचित् मोक्षका साधन नहीं है, तत्सम्बन्धी
कथन............................................. १२४
एकत्वभावनारूप परिणमित सम्यग्ज्ञानीका
लक्षण ............................................ १०२
परम वीतरागसंयमीको सामायिकव्रत स्थायी है,
आत्मगत दोषोंसे मुक्त होनेके उपायका
ऐसा निरूपण................................... १२५
कथन............................................. १०३
परममुमुक्षुका स्वरूप ................................ १२६
आत्मा ही उपादेय है — ऐसा कथन ............. १२७
परम तपोधनकी भावशुद्धिका कथन............. १०४ निश्चयप्रत्याख्यानके योग्य जीवका स्वरूप ....... १०५ निश्चय-प्रत्याख्यान अधिकारका उपसंहार......... १०६
रागद्वेषके अभावसे अपरिस्पंदरूपता होती
है, तत्सम्बन्धी कथन ......................... १२८
७ – परम-आलोचन अधिकार
आर्त्त-रौद्र ध्यानके परित्याग द्वारा सनातन
निश्चय-आलोचनाका स्वरूप ....................... १०७ आलोचनाके स्वरूपके भेदोंका कथन ........... १०८
सामायिकव्रतके स्वरूपका कथन ........... १२९
सुकृतदृष्कृतरूप कर्मके सन्यासकी विधि ...... १३०
नौ नौ कषायकी विजय द्वारा प्राप्त होनेवाले
८ – शुद्धनिश्चय-प्रायश्चित्त अधिकार
सामायिक चारित्रका स्वरूप ................. १३१
निश्चय-प्रायश्चित्तका स्वरूप......................... ११३ चार कषायों पर विजय प्राप्त करनेके उपायका
परम समाधि अधिकारका उपसंहार .............. १३३
१० – परमभक्ति अधिकार
स्वरूप ........................................... ११५
‘‘शुद्ध ज्ञानका स्वीकार करनेवालेको प्रायश्चित्त
रत्नत्रयका स्वरूप.................................... १३४
व्यवहारनयप्रधान सिद्धभक्तिका स्वरूप .......... १३५
है’’ — ऐसा कथन ............................. ११६