निज परमात्माकी भक्तिका स्वरूप .............. १३६
निश्चययोगभक्तिका स्वरूप ......................... १३७
विपरीत अभिनिवेश रहित आत्मभाव ही
निश्चयपरमयोग है, तत्सम्बन्धी कथन ....... १३९
भक्ति अधिकारका उपसंहार ...................... १४०
११ – निश्चय-परमावश्यक अधिकार
निरन्तर स्ववशको निश्चय-आवश्यक होने
सम्बन्धी कथन ................................. १४१
अवश परम जिनयोगीश्वरको परम आवश्यक-
कर्म आवश्यक है — ऐसा कथन ........... १४२
भेदोपचार-रत्नत्रयपरिणतिवाले जीवको अवशपना
न होने सम्बन्धी कथन........................ १४३
अन्यवश ऐसे अशुद्ध-अन्तरात्म जीवका लक्षण १४४
अन्यवशका स्वरूप ................................. १४५
साक्षात् स्ववश परमजिनयोगीश्वरका
स्वरूप ........................................... १४६
शुद्ध-निश्चय-आवश्यककी प्राप्तिके उपायका
स्वरूप ........................................... १४७
शुद्धोपयोगोन्मुख जीवको सीख .................... १४८
आवश्यक कर्मके अभावमें तपोधन बहिरात्मा होता
है – तत्सम्बन्धी कथन .......................... १४९
बाह्य तथा अन्तर जल्पका निरास ................ १५०
स्वात्माश्रित निश्चयधर्मध्यान और निश्चयशुक्लध्यान-
यह दो ध्यान ही उपादेय हैं, तत्सम्बन्धी
कथन............................................. १५१
परमवीतरागचारित्रमें स्थित परम तपोधनका
स्वरूप ........................................... १५२
समस्त वचनसम्बन्धी व्यापारका निरास .......... १५३
शुद्धनिश्चयधर्मध्यानस्वरूप प्रतिक्रमणादि ही
करने योग्य हैं, तत्सम्बन्धी कथन .......... १५४
साक्षात् अन्तर्मुख परमजिनयोगीको सीख ........ १५५
वचनसम्बन्धी व्यापारकी निवृत्तिके
हेतुका कथन ................................... १५६
सहजतत्त्वकी आराधनाकी विधि .................. १५७
परमावश्यक अधिकारका उपसंहार ............... १५८
१२ – शुद्धोपयोग अधिकार
ज्ञानीको स्व-पर स्वरूपका प्रकाशपना कथंचित्
है, तत्सम्बन्धी कथन ......................... १५९
केवलज्ञान और केवलदर्शनके युगपद्
प्रवर्तन सम्बन्धी दृष्टान्त द्वारा कथन ........ १६०
आत्माके स्वपरप्रकाशकपने सम्बन्धी विरोध
कथन............................................. १६१
एकान्तसे आत्माको परप्रकाशकपना होनेकी
बातका खंडन .................................. १६३
व्यवहारनयकी सफलता दर्शानेवाला कथन...... १६४
निश्चयनयसे स्वरूपका कथन ...................... १६५
शुद्धनिश्चयनयकी विवक्षासे परदर्शनका खण्डन १६६
केवलज्ञानका स्वरूप ................................ १६७
केवलदर्शनके अभावमें सर्वज्ञता नहीं होती
तत्सम्बन्धी कथन .............................. १६८
व्यवहारनयकी प्रगटतासे कथन .................... १६९
‘‘जीव ज्ञानस्वरूप है’’ ऐसा वितर्क
निरूपण ......................................... १७०
गुण-गुणीमें भेदका अभाव होने सम्बन्धी
कथन............................................. १७१
सर्वज्ञ वीतरागको वांछाका अभाव होता है,
तत्सम्बन्धी कथन .............................. १७२
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विषय
गाथा
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