[ २२ ]
विषय
गाथा
विषय
गाथा
निज परमात्माकी भक्तिका स्वरूप .............. १३६
निश्चययोगभक्तिका स्वरूप ......................... १३७
विपरीत अभिनिवेश रहित आत्मभाव ही
निश्चययोगभक्तिका स्वरूप ......................... १३७
विपरीत अभिनिवेश रहित आत्मभाव ही
शुद्धनिश्चयधर्मध्यानस्वरूप प्रतिक्रमणादि ही
करने योग्य हैं, तत्सम्बन्धी कथन .......... १५४
साक्षात् अन्तर्मुख परमजिनयोगीको सीख ........ १५५
वचनसम्बन्धी व्यापारकी निवृत्तिके
वचनसम्बन्धी व्यापारकी निवृत्तिके
निश्चयपरमयोग है, तत्सम्बन्धी कथन ....... १३९
हेतुका कथन ................................... १५६
भक्ति अधिकारका उपसंहार ...................... १४०
सहजतत्त्वकी आराधनाकी विधि .................. १५७
परमावश्यक अधिकारका उपसंहार ............... १५८
परमावश्यक अधिकारका उपसंहार ............... १५८
११ – निश्चय-परमावश्यक अधिकार निरन्तर स्ववशको निश्चय-आवश्यक होने
१२ – शुद्धोपयोग अधिकार
सम्बन्धी कथन ................................. १४१
ज्ञानीको स्व-पर स्वरूपका प्रकाशपना कथंचित्
अवश परम जिनयोगीश्वरको परम आवश्यक-
है, तत्सम्बन्धी कथन ......................... १५९
कर्म आवश्यक है — ऐसा कथन ........... १४२
केवलज्ञान और केवलदर्शनके युगपद्
भेदोपचार-रत्नत्रयपरिणतिवाले जीवको अवशपना
प्रवर्तन सम्बन्धी दृष्टान्त द्वारा कथन ........ १६०
न होने सम्बन्धी कथन........................ १४३
आत्माके स्वपरप्रकाशकपने सम्बन्धी विरोध
अन्यवश ऐसे अशुद्ध-अन्तरात्म जीवका लक्षण १४४ अन्यवशका स्वरूप ................................. १४५ साक्षात् स्ववश परमजिनयोगीश्वरका
कथन............................................. १६१
एकान्तसे आत्माको परप्रकाशकपना होनेकी
बातका खंडन .................................. १६३
स्वरूप ........................................... १४६
व्यवहारनयकी सफलता दर्शानेवाला कथन...... १६४
निश्चयनयसे स्वरूपका कथन ...................... १६५
शुद्धनिश्चयनयकी विवक्षासे परदर्शनका खण्डन १६६
केवलज्ञानका स्वरूप ................................ १६७
केवलदर्शनके अभावमें सर्वज्ञता नहीं होती
निश्चयनयसे स्वरूपका कथन ...................... १६५
शुद्धनिश्चयनयकी विवक्षासे परदर्शनका खण्डन १६६
केवलज्ञानका स्वरूप ................................ १६७
केवलदर्शनके अभावमें सर्वज्ञता नहीं होती
शुद्ध-निश्चय-आवश्यककी प्राप्तिके उपायका
स्वरूप ........................................... १४७
शुद्धोपयोगोन्मुख जीवको सीख .................... १४८ आवश्यक कर्मके अभावमें तपोधन बहिरात्मा होता
है – तत्सम्बन्धी कथन .......................... १४९
तत्सम्बन्धी कथन .............................. १६८
बाह्य तथा अन्तर जल्पका निरास ................ १५० स्वात्माश्रित निश्चयधर्मध्यान और निश्चयशुक्लध्यान-
व्यवहारनयकी प्रगटतासे कथन .................... १६९
‘‘जीव ज्ञानस्वरूप है’’ ऐसा वितर्क
‘‘जीव ज्ञानस्वरूप है’’ ऐसा वितर्क
यह दो ध्यान ही उपादेय हैं, तत्सम्बन्धी
कथन............................................. १५१
कथन............................................. १५१
निरूपण ......................................... १७०
गुण-गुणीमें भेदका अभाव होने सम्बन्धी
परमवीतरागचारित्रमें स्थित परम तपोधनका
कथन............................................. १७१
स्वरूप ........................................... १५२
सर्वज्ञ वीतरागको वांछाका अभाव होता है,
समस्त वचनसम्बन्धी व्यापारका निरास .......... १५३
तत्सम्बन्धी कथन .............................. १७२