Niyamsar (Hindi). Gatha: 121.

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[श्लोकार्थ : ] जो अनवरतरूपसे (निरन्तर) अखण्ड अद्वैत चैतन्यके कारण
निर्विकार है उसमें (उस परमात्मपदार्थमें) समस्त नयविलास किंचित् स्फु रित ही नहीं
होता जिसमेंसे समस्त भेदवाद (नयादि विकल्प) दूर हुए हैं उसे (उस परमात्म-
पदार्थको) मैं नमन करता हूँ, उसका स्तवन करता हूँ, सम्यक् प्रकारसे भाता हूँ १९२
[श्लोकार्थ : ] यह ध्यान है, यह ध्येय है, यह ध्याता है और वह फल है
ऐसे विकल्पजालोंसे जो मुक्त (रहित) है उसे (उस परमात्मतत्त्वको) मैं नमन
करता हूँ १९३
[श्लोकार्थ : ] जिस योगपरायणमें कदाचित् भेदवाद उत्पन्न होते हैं (अर्थात्
जिस योगनिष्ठ योगीको कभी विकल्प उठते हैं ), उसकी अर्हत्के मतमें मुक्ति होगी या नहीं
होगी वह कौन जानता है ? १९४
(मालिनी)
अनवरतमखंडाद्वैतचिन्निर्विकारे
निखिलनयविलासो न स्फु रत्येव किंचित
अपगत इह यस्मिन् भेदवादस्समस्तः
तमहमभिनमामि स्तौमि संभावयामि
।।१९२।।
(अनुष्टुभ्)
इदं ध्यानमिदं ध्येयमयं ध्याता फलं च तत
एभिर्विकल्पजालैर्यन्निर्मुक्तं तन्नमाम्यहम् ।।१९३।।
(अनुष्टुभ्)
भेदवादाः कदाचित्स्युर्यस्मिन् योगपरायणे
तस्य मुक्ति र्भवेन्नो वा को जानात्यार्हते मते ।।१९४।।
कायाईपरदव्वे थिरभावं परिहरत्तु अप्पाणं
तस्स हवे तणुसग्गं जो झायइ णिव्वियप्पेण ।।१२१।।
परद्रव्य काया आदिसे परित्याग स्थैर्य, निजात्मको
ध्याता विकल्पविमुक्त, उसको नियत कायोत्सर्ग है ।।१२१।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]शुद्धनिश्चय-प्रायश्चित्त अधिकार[ २४३