Niyamsar (Hindi). Gatha: 121.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]शुद्धनिश्चय-प्रायश्चित्त अधिकार[ २४३
(मालिनी)
अनवरतमखंडाद्वैतचिन्निर्विकारे
निखिलनयविलासो न स्फु रत्येव किंचित
अपगत इह यस्मिन् भेदवादस्समस्तः
तमहमभिनमामि स्तौमि संभावयामि
।।१९२।।
(अनुष्टुभ्)
इदं ध्यानमिदं ध्येयमयं ध्याता फलं च तत
एभिर्विकल्पजालैर्यन्निर्मुक्तं तन्नमाम्यहम् ।।१९३।।
(अनुष्टुभ्)
भेदवादाः कदाचित्स्युर्यस्मिन् योगपरायणे
तस्य मुक्ति र्भवेन्नो वा को जानात्यार्हते मते ।।१९४।।
कायाईपरदव्वे थिरभावं परिहरत्तु अप्पाणं
तस्स हवे तणुसग्गं जो झायइ णिव्वियप्पेण ।।१२१।।

[श्लोकार्थ : ] जो अनवरतरूपसे (निरन्तर) अखण्ड अद्वैत चैतन्यके कारण निर्विकार है उसमें (उस परमात्मपदार्थमें) समस्त नयविलास किंचित् स्फु रित ही नहीं होता जिसमेंसे समस्त भेदवाद (नयादि विकल्प) दूर हुए हैं उसे (उस परमात्म- पदार्थको) मैं नमन करता हूँ, उसका स्तवन करता हूँ, सम्यक् प्रकारसे भाता हूँ १९२

[श्लोकार्थ : ] यह ध्यान है, यह ध्येय है, यह ध्याता है और वह फल है ऐसे विकल्पजालोंसे जो मुक्त (रहित) है उसे (उस परमात्मतत्त्वको) मैं नमन करता हूँ १९३

[श्लोकार्थ : ] जिस योगपरायणमें कदाचित् भेदवाद उत्पन्न होते हैं (अर्थात् जिस योगनिष्ठ योगीको कभी विकल्प उठते हैं ), उसकी अर्हत्के मतमें मुक्ति होगी या नहीं होगी वह कौन जानता है ? १९४

परद्रव्य काया आदिसे परित्याग स्थैर्य, निजात्मको
ध्याता विकल्पविमुक्त, उसको नियत कायोत्सर्ग है ।।१२१।।