Niyamsar (Hindi). Adhikar-1 : jiv adhikAr.

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नमः परमात्मने।
श्रीमद्भभगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत
श्री
नियमसार
जीव अधिकार
श्रीपद्मप्रभमलधारिदेवविरचिततात्पर्यवृत्तिः ।
(मालिनी)
त्वयि सति परमात्मन्माद्रशान्मोहमुग्धान्
कथमतनुवशत्वान्बुद्धकेशान्यजेऽहम्
सुगतमगधरं वा वागधीशं शिवं वा
जितभवमभिवन्दे भासुरं श्रीजिनं वा
।।।।
मूल गाथाओंके तथा तात्पर्यवृत्ति नामक टीकाके गुजराती अनुवादका
हिन्दी रूपान्तर
[प्रथम, ग्रन्थके आदिमें श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवविरचित प्राकृतगाथाबद्ध इस
‘नियमसार’ नामक शास्त्रकी ‘तात्पर्यवृत्ति’ नामक संस्कृत टीकाके रचयिता मुनि श्री
पद्मप्रभमलधारिदेव सात श्लोकों द्वारा मंगलाचरणादि करते हैं :
]
[श्लोेकार्थ :] हे परमात्मा ! तेरे होते हुए मैं अपने जैसे (संसारियों जैसे)
मोहमुग्ध और कामवश बुद्धको तथा ब्रह्मा-विष्णु-महेशको क्यों पूजूँ ? (नहीं पूजूँगा )