[श्लोकार्थ : — ] भवके करनेवाले ऐसे इन विकल्प-कथनोंसे बस होओ, बस
होओ । जो अखण्डानन्दस्वरूप है वह (यह आत्मा) समस्त नयराशिका अविषय है;
इसलिये यह कोई (अवर्णनीय) आत्मा द्वैत या अद्वैतरूप नहीं है (अर्थात् द्वैत - अद्वैतके
विकल्पोंसे पर है ) । उस एकको मैं अल्प कालमें भवभयका नाश करनेके लिये सतत
वंदन करता हूँ ।२०८।
[श्लोकार्थ : — ] योनिमें सुख और दुःख सुकृत और दुष्कृतके समूहसे होता है
(अर्थात् चार गतिके जन्मोंमें सुखदुःख शुभाशुभ कृत्योंसे होता है ) । और दूसरे प्रकारसे
( – निश्चयनयसे), आत्माको शुभका भी अभाव है तथा अशुभ परिणति भी नहीं है — नहीं
है, क्योंकि इस लोकमें एक आत्माको (अर्थात् आत्मा सदा एकरूप होनेसे उसे) अवश्य
भवका परिचय बिलकुल नहीं है । इसप्रकार जो भवगुणोंके समूहसे संन्यस्त है (अर्थात्
जो शुभ - अशुभ, राग - द्वेष आदि भवके गुणोंसे — विभावोंसे – रहित है ) उसका ( – नित्यशुद्ध
आत्माका) मैं स्तवन करता हूँ ।२०९।
[श्लोकार्थ : — ] सदा शुद्ध - शुद्ध ऐसा यह (प्रत्यक्ष) चैतन्यचमत्कारमात्र तत्त्व
(शिखरिणी)
विकल्पोपन्यासैरलमलममीभिर्भवकरैः
अखंडानन्दात्मा निखिलनयराशेरविषयः ।
अयं द्वैताद्वैतो न भवति ततः कश्चिदचिरात्
तमेकं वन्देऽहं भवभयविनाशाय सततम् ।।२०८।।
(शिखरिणी)
सुखं दुःखं योनौ सुकृतदुरितव्रातजनितं
शुभाभावो भूयोऽशुभपरिणतिर्वा न च न च ।
यदेकस्याप्युच्चैर्भवपरिचयो बाढमिह नो
य एवं संन्यस्तो भवगुणगणैः स्तौमि तमहम् ।।२०९।।
(मालिनी)
इदमिदमघसेनावैजयन्तीं हरेत्तां
स्फु टितसहजतेजःपुंजदूरीकृतांहः- ।
प्रबलतरतमस्तोमं सदा शुद्धशुद्धं
जयति जगति नित्यं चिच्चमत्कारमात्रम् ।।२१०।।
२५६ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-