Niyamsar (Hindi).

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टीका :यह, नौ नोकषायकी विजय द्वारा प्राप्त होनेवाले सामायिकचारित्रके
स्वरूपका कथन है
मोहनीयकर्मजनित स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय
और जुगुप्सा नामके नौ नोकषायसे होनेवाले कलंकपंकस्वरूप (मल-कीचड़स्वरूप)
समस्त विकारसमूहको परम समाधिके बलसे जो निश्चयरत्नत्रयात्मक परम तपोधन
छोड़ता है, उसे वास्तवमें केवलीभट्टारकके शासनसे सिद्ध हुआ परम सामायिक नामका
व्रत शाश्वतरूप है ऐसा इन दो सूत्रोंसे कहा है
[अब इन १३११३२वीं गाथाओंकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज
श्लोक कहते हैं : ]
[श्लोकार्थ : ] संसारस्त्रीजनित सुखदुःखावलिका करनेवाला नौ
कषायात्मक यह सब (नौ नोकषायस्वरूप सर्व विकार) मैं वास्तवमें प्रमोदसे छोड़ता
हूँकि जो नौ नोकषायात्मक विकार महामोहांध जीवोंको निरन्तर सुलभ है तथा
निरन्तर आनन्दित मनवाले समाधिनिष्ठ (समाधिमें लीन) जीवोंको अति दुर्लभ है २१८
नवनोकषायविजयेन समासादितसामायिकचारित्रस्वरूपाख्यानमेतत
मोहनीयकर्मसमुपजनितस्त्रीपुंनपुंसकवेदहास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्साभिधाननवनोकषाय-
कलितकलंकपंकात्मकसमस्तविकारजालकं परमसमाधिबलेन यस्तु निश्चयरत्नत्रयात्मक-
परमतपोधनः संत्यजति, तस्य खलु केवलिभट्टारकशासनसिद्धपरमसामायिकाभिधानव्रतं
शाश्वतरूपमनेन सूत्रद्वयेन कथितं भवतीति
(शिखरिणी)
त्यजाम्येतत्सर्वं ननु नवकषायात्मकमहं
मुदा संसारस्त्रीजनितसुखदुःखावलिकरम्
महामोहान्धानां सततसुलभं दुर्लभतरं
समाधौ निष्ठानामनवरतमानन्दमनसाम्
।।२१८।।
सुखदुःखावलि = सुखदुःखकी आवलि; सुखदुःखकी पंक्तिश्रेणी (नौ नोकषायात्मक विकार संसाररूपी
स्त्रीसे उत्पन्न सुखदुःखकी श्रेणीका करनेवाला है )
कहानजैनशास्त्रमाला ]परम-समाधि अधिकार[ २६५