Niyamsar (Hindi). Gurudevshreeke vachanAmrut bol No-211:.

< Previous Page   Next Page >


Page 376 of 388
PDF/HTML Page 403 of 415

 

background image
आत्माका स्वभाव त्रैकालिक परमपारिणामिकभावरूप है; उस
स्वभावको पकड़नेसे ही मुक्ति होती है वह स्वभाव कैसे पकड़में
आता है ? रागादि औदयिक भावों द्वारा वह स्वभाव पकड़में नहीं
आता; औदयिक भाव तो बहिर्मुख हैं और पारिणामिक स्वभाव तो
अन्तर्मुख है
बहिर्मुख भाव द्वारा अन्तर्मुख भाव पकड़में नहीं आता
तथा जो अन्तर्मुखी औपशमिक, क्षायोपशमिक क्षायिक भाव हैं उनके
द्वारा वह पारिणामिक भाव यद्यपि पकड़में आता है, तथापि उन
औपशमिकादि भावोंके लक्षसे वह पकड़में नहीं आता
अन्तर्मुख होकर
उस परम स्वभावको पकड़नेसे औपशमिकादि निर्मल भाव प्रगट होते
हैं
वे भाव स्वयं कार्यरूप हैं, और परम पारिणामिक स्वभाव
कारणरूप परमात्मा है
गुरुदेवश्रीके वचनामृत : २१९