इति सुकविजनपयोजमित्रपंचेन्द्रियप्रसरवर्जितगात्रमात्रपरिग्रहश्रीपद्मप्रभमलधारिदेव - विरचितायां नियमसारव्याख्यायां तात्पर्यवृत्तौ शुद्धोपयोगाधिकाराे द्वादशमः श्रुतस्कन्धः ।।
इसप्रकार, सुकविजनरूपी कमलोंके लिये जो सूर्य समान हैं और पाँच इन्द्रियोंके फै लाव रहित देहमात्र जिन्हें परिग्रह था ऐसे श्री पद्मप्रभमलधारिदेव द्वारा रचित नियमसारकी तात्पर्यवृत्ति नामक टीकामें (अर्थात् श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेव- प्रणीत श्री नियमसार परमागमकी निर्ग्रंथ मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेवविरचित तात्पर्यवृत्ति नामकी टीकामें ) शुद्धोपयोग अधिकार नामका बारहवाँ श्रुतस्कन्ध समाप्त हुआ ।
इसप्रकार (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत श्री निमयसार परमागमकी निर्ग्रन्थ मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेवविरचित ) तात्पर्यवृत्ति नामक संस्कृत टीकाके श्री हिंमतलाल जेठालाल शाह कृत गुजराती अनुवादका हिन्दी रूपान्तर समाप्त हुआ ।