Niyamsar (Hindi). Gatha: 17.

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नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
चउदहभेदा भणिदा तेरिच्छा सुरगणा चउब्भेदा
एदेसिं वित्थारं लोयविभागेसु णादव्वं ।।१७।।
मानुषा द्विविकल्पाः कर्ममहीभोगभूमिसंजाताः
सप्तविधा नारका ज्ञातव्याः पृथ्वीभेदेन ।।१६।।
चतुर्दशभेदा भणितास्तिर्यञ्चः सुरगणाश्चतुर्भेदाः
एतेषां विस्तारो लोकविभागेषु ज्ञातव्यः ।।१७।।
चतुर्गतिस्वरूपनिरूपणाख्यानमेतत
मनोरपत्यानि मनुष्याः ते द्विविधाः, कर्मभूमिजा भोगभूमिजाश्चेति तत्र

कर्मभूमिजाश्च द्विविधाः, आर्या म्लेच्छाश्चेति आर्याः पुण्यक्षेत्रवर्तिनः म्लेच्छाः पापक्षेत्रवर्तिनः भोगभूमिजाश्चार्यनामधेयधरा जघन्यमध्यमोत्तमक्षेत्रवर्तिनः एकद्वित्रि-

गाथा : १६-१७ अन्वयार्थ :[मानुषाः द्विविकल्पाः] मनुष्योंके दो भेद हैं : [कर्ममहीभोगभूमिसंजाताः ] कर्मभूमिमें जन्मे हुए और भोगभूमिमें जन्मे हुए; [पृथ्वीभेदेन ] पृथ्वीके भेदसे [नारकाः ] नारक [सप्तविधाः ज्ञातव्याः ] सात प्रकारके जानना; [तिर्यंञ्चः ] तिर्यंचोंके [चतुर्दशभेदाः ] चौदहभेद [भणिताः ] कहे हैं; [सुरगणाः ] देवसमूहोंके [चतुर्भेदाः ] चार भेद हैं [एतेषां विस्तारः ] इनका विस्तार [लोकविभागेषु ज्ञातव्यः ] लोकविभागमेंसे जान लेना

टीका* :यह, चार गतिके स्वरूपनिरूपणरूप कथन है

मनुकी सन्तान वह मनुष्य हैं वे दो प्रकारके हैं : कर्मभूमिज और भोगभूमिज उनमें कर्मभूमिज मनुष्य भी दो प्रकारके हैं : आर्य और म्लेच्छ पुण्यक्षेत्रमें रहनेवाले वे आर्य हैं और पापक्षेत्रमें रहनेवाले वे म्लेच्छ हैं भोगभूमिज

भोगभूमिके अन्तमें और कर्मभूमिके आदिमें होनेवाले कुलकर मनुष्योंको आजीविकाके साधन सिखाकर
लालित
पालित करते हैं इसलिये वे मनुष्योंके पिता समान हैं कुलकरको मनु कहा जाता है
तिर्यञ्च चौदह भेदवाले, देव चार प्रकारके
इन सर्वका विस्तार है, ज्ञातव्य लोकविभागसे ।।१७।।