कर्मभूमिजाश्च द्विविधाः, आर्या म्लेच्छाश्चेति । आर्याः पुण्यक्षेत्रवर्तिनः । म्लेच्छाः पापक्षेत्रवर्तिनः । भोगभूमिजाश्चार्यनामधेयधरा जघन्यमध्यमोत्तमक्षेत्रवर्तिनः एकद्वित्रि-
गाथा : १६-१७ अन्वयार्थ : — [मानुषाः द्विविकल्पाः] मनुष्योंके दो भेद हैं : [कर्ममहीभोगभूमिसंजाताः ] कर्मभूमिमें जन्मे हुए और भोगभूमिमें जन्मे हुए; [पृथ्वीभेदेन ] पृथ्वीके भेदसे [नारकाः ] नारक [सप्तविधाः ज्ञातव्याः ] सात प्रकारके जानना; [तिर्यंञ्चः ] तिर्यंचोंके [चतुर्दशभेदाः ] चौदहभेद [भणिताः ] कहे हैं; [सुरगणाः ] देवसमूहोंके [चतुर्भेदाः ] चार भेद हैं । [एतेषां विस्तारः ] इनका विस्तार [लोकविभागेषु ज्ञातव्यः ] लोकविभागमेंसे जान लेना ।
मनुकी सन्तान वह मनुष्य हैं । वे दो प्रकारके हैं : कर्मभूमिज और भोगभूमिज । उनमें कर्मभूमिज मनुष्य भी दो प्रकारके हैं : आर्य और म्लेच्छ । पुण्यक्षेत्रमें रहनेवाले वे आर्य हैं और पापक्षेत्रमें रहनेवाले वे म्लेच्छ हैं । भोगभूमिज ❃
लालित – पालित करते हैं इसलिये वे मनुष्योंके पिता समान हैं । कुलकरको मनु कहा जाता है ।