Niyamsar (Hindi). PrakAshakiy nivedan.

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नमः परमागमश्रीनियमसाराय
प्रकाशकीय निवेदन
(षष्ठ संस्करण)
प्रवर्तमानतीर्थनेता सर्वज्ञवीतराग भगवान श्री महावीरस्वामीकी ॐकारस्वरूप दिव्य
देशनासे प्रवाहित और गणधरदेव श्री गौतमस्वामी आदि गुरुपरम्परा द्वारा प्राप्त
शुद्धात्मानुभूतिप्रधान परमपावन अध्यात्मप्रवाहको झेलकर, तथा जम्बू-पूर्वविदेहक्षेत्रस्थ
जीवन्तस्वामी श्री सीमन्धर जिनवरकी प्रत्यक्ष वन्दना एवं देशनाश्रवणसे पुष्ट कर, उसे
श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवने समयसार, नियमसार आदि परमागमरूप भाजनोंमें संग्रहीत कर
अध्यात्मतत्त्वरसिक जगत पर महान उपकार किया है
अध्यात्मश्रुतलब्धिधर महर्षि श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव प्रणीत जो अनेक रचनाएँ उपलब्ध
हैं उनमें श्री समयसार, श्री प्रवचनसार, श्री पञ्चास्तिकायसंग्रह, श्री नियमसार, श्री
अष्टप्राभृत
ये पाँच परमागम मुख्य हैं ये पाँचों परमागम हमारे द्वारा गुजराती एवं हिन्दी
भाषामें अनेक बार प्रकाशित हो चुके हैं टीकाकार मुनिवर श्री पद्मप्रभमलधारीदेवकी
तात्पर्यवृत्ति टीका सहित ‘नियमसार’के अध्यात्मरसिक विद्वान श्री हिम्मतलाल जेठालाल शाह
कृत गुजराती अनुवादके हिन्दी रूपान्तरका यह षष्ठ संस्करण अध्यात्मविद्याप्रेमी जिज्ञासुओंके
हाथमें प्रस्तुत करते हुए आनन्द अनुभूत होता है
श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेवके ‘प्राभृतत्रय’ (समयसार-प्रवचनसार-पञ्चास्तिकायसंग्रह) की
तुलनामें इस ‘नियमसार’ शास्त्रकी बहुत कम प्रसिद्धि थी इसकी बहुमुखी प्रसिद्धिका श्रेय
श्री कुन्दकुन्दभारतीके परमोपासक, अध्यात्मयुगप्रवर्तक, परमोपकारी पूज्य सद्गुरुदेव श्री
कानजीस्वामीको है
प्रथम यह शास्त्र संस्कृत टीका एवं ब्र. श्री शीतलप्रसादजी कृत हिन्दी
अनुवाद सहित प्रकाशित हुआ था उस पर पूज्य गुरुदेवश्रीने वि. सं. १९९९में सोनगढ़में
प्रवचन किये उस समय उनकी तीक्ष्ण गहरी दृष्टिने तन्निहित अति गम्भीर भावोंको परख
लिया....और ऐसा महिमावंत परमागम यदि गुजराती भाषामें अनुवादित होकर शीघ्र प्रकाशित
हो जाये तो जिज्ञासुओंको बहुत लाभ हों ऐसी उनके हृदयमें भावना जगी
प्रशममूर्ति पूज्य