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ते चेतन तत्त्व जीवित रहे.
करवाने कारणे स्थूळ छे तो मूर्ति रहित होवाना कारणे सूक्ष्म पण छे, जो ते सामान्य स्वरूपे
एक छे तो विशेष स्वरूपे अनेक पण छे, जो ते स्वकीय द्रव्यादि चतुष्टयनी अपेक्षाए सत्
छे तो परकीय द्रव्यादिचतुष्टयनी अपेक्षाए असत् पण छे तथा जो ते अनंतचतुष्टय आदि
गुणोथी परिपूर्ण छे तो रूप
यो दृष्टिं शुचिमुक्ति हंसवनितां प्रत्यादराद्दत्तवान्
सम्यक्साम्यसरोवरस्थितिजुषे हंसाय तस्मै नमः
आदरथी मुक्तिरूप हंसी उपर ज पोतानी द्रष्टि राखे छे तथा जे चित्तवृत्तिना
निरोधथी प्राप्त थयेल परब्रह्मस्वरूप आनंदरूपी जळथी परिपूर्ण एवा समीचीन
समताभावरूप सरोवरमां निवास करे छे ते आत्मारूप हंसने नमस्कार हो. ३.
जे सर्व पदार्थोनुं प्रकाशक छे तथा जे सुखनुं कारण छे ते चित्स्वरूप तेजने नमस्कार
करो. ४.
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समूह क्रीडामात्रथी ज नाश पामे छे अर्थात् जे वचननो अविषय छे; ते चिद्रूप तेज
जयवंत हो. ५.
ज शी छे?
जोईए कारण के ते स्वानुभवनो विषय छे. तेथी ते सत् ज छे, नहि के असत्.
७.
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वनमां शोधे छे. ९.
थतो नथी. योग्य छे
जीव नाटकना पात्र समान लागे छे.
होता नथी. बराबर ए ज रीते जे बाह्य तपश्चरणादि तो करे छे, परंतु सम्यग्दर्शन रहित होवाना
कारणे ते चैतन्य तत्त्वनो अनुभव करी शकता नथी. तेओ योगीनो वेश लईने पण वास्तविक योगी
थई शकता नथी. ११.
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जीव अनेक धर्मयुक्त ते चेतन तत्त्वने यथार्थ स्वरूपे न जाणतां एकांते कोई एक ज धर्मस्वरूप
समजी ले छे. ए ज कारणे ते जन्म
सिद्ध समान छे. परंतु पर्यायस्वरूपे ते कर्मबंध सहित होईने राग
आ रीते नयविवक्षाथी एम मानवामां कांई पण विरोध आवतो नथी. १४.
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पोताना स्वाभाविक चैतन्यनो आश्रय ले छे ते क्रमे करीने एकत्व पामी पोताना
स्वाभाविक उत्कृष्ट पद (मोक्ष) ने निश्चितपणे ज प्राप्त करी ले छे. १५.
मोक्ष पद पण प्राप्त थई जाय छे. १६.
(संसार) रूप वनने बाळवा माटे तीक्ष्ण अग्नि समान होय छे. १७.
ए छे के संयमी पुरुष निर्विकल्प पदवी पामीने ज निश्चयथी उत्कृष्ट मोक्षपद पामे
छे. १८.
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विकल्प पण योग्य नथी कारण के ते पण उपाधिथी निर्मित होवाना कारणे संसारनुं
ज कारण थाय छे. १९.
कारण थाय छे. बराबर छे
होई शके नहि.
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संचार करनार योगीना तत्त्वदर्शनमां अज्ञान
सर्वदा भिन्न छुं. ठीक छे
मोक्षनुं कारण थाय छे. २५.
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मोक्षाभिलाषी भव्य जीवे आ समस्त योगमार्गनुं ज्ञान गुरुना उपदेशथी प्राप्त करवुं
जोईए. २६.
ते केवळ मोहजनित प्रमाद छे. २७.
तेने पण आ तीर्थ धोई नाखे छे. २८.
नाश नथी पामती? अर्थात् ते अवश्यमेव नाश पामे छे.
समुद्रना तटनी आराधना करनार योगीने पण अमूल्य रत्नो (सम्यग्दर्शन, ज्ञान अने चारित्र
आदि) नो संचय थई जाय छे अने एनाथी तेनी दुर्गति (नारक पर्याय आदि) पण नष्ट
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लाभ थाय छे. २९.
निश्चयनयनी अपेक्षाए ते रत्नत्रयस्वरूप आत्मा एक ज छे, तेमां
सम्यग्दर्शनादिनो भेद पण द्रष्टिगोचर थतो नथी.
कहे छे. पापरूप क्रियाओना परित्यागने व्यवहार सम्यक् चारित्र कहेवामां आवे छे. आ
व्यवहारनी अपेक्षाए तेमना स्वरूपनो विचार थयो. निश्चयनयनी अपेक्षाए तेमनुं स्वरूप आ
रीते छे. शुद्ध आत्माना विषयमां रुचि उत्पन्न थवी ते निश्चय सम्यग्दर्शन, ते ज आत्माना
स्वरूपने जाणवुं ते निश्चय सम्यग्ज्ञान अने उक्त आत्मामां ज लीन थवुं ए निश्चय चारित्र
कहेवाय छे. आमां व्यवहार ज्यां सुधी निश्चयनो साधक छे त्यांसुधी ज ते उपादेय छे,
वास्तवमां ते असत्यार्थ होवाथी हेय ज छे. उपादेय केवळ निश्चय ज छे, केमके ते यथार्थ
छे. अहीं निश्चय रत्नत्रयना स्वरूपनुं ज दिग्दर्शन कराववामां आव्युं छे ते निर्मळ ध्याननी
अपेक्षा राखे छे. ३०.
करीने कर्मरूप शत्रुओनो नाश करी नाखे छे.
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थयेला सम्यग्दर्शनादिरूपी बाणो द्वारा कर्मरूपी शत्रु पण नष्ट करी देवामां आवे छे. ३१.
होय छे. परंतु प्रमाद अवस्था पामेला मुनिने कर्मनी अधिकताने कारणे ते (मुनिवृति)
आनाथी विपरीत अर्थात् उपर्युक्त त्रण गुप्तिओथी रहित होय छे. ३२.
समान प्रतिभासे छे. ३३.
तरत ज भस्म थई जाय छे. ३४.
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उत्तम फळ उत्पन्न करे छे. ३५.
ज्ञानथी भेदातुं नथी.
ए छे के आत्मतत्त्वनुं परिज्ञान प्राप्त करवुं ए ज तो आगमना अभ्यासनुं फळ छे, अने ते तेने
प्राप्त थई ज गयुं छे. हवे तेने मोक्षपद कांई दूर नथी. ३६.
थी सुशोभित छे, ते शुं संसारमां मोहरूपी अंधकारने नष्ट करतो प्रतिभासित नथी
थतो? अर्थात् अवश्य ज प्रतिभासित थाय छे. ३७.
समान समीचीन नथी, परंतु दुराचारिणी स्त्री समान छे. ३८.
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उपदेशथी स्थिर आत्मपद (मोक्ष)ने ज प्राप्त करे छे. ३९.
उपदेशथी जागी उठे छे त्यारे संयोगने प्राप्त थयेल ते बधा ज बाह्य पदार्थोने नश्वर
समजवा मांडे छे. ४०.
करवो जोईए. ४१.
मनुष्यने जगतनो अधीश्वर बनावी दे छे. ४२.
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जोईए. ४३.
सुख अने दुःखनी प्राप्ति थाय छे. आ बन्नेय प्रकारना योग शरीर साथे संबद्ध होवाना कारणे
बहिरंग कहेवाय छे. अंतरंग योग समाधि छे. एनाथी जीवने अविनश्वर पदनी प्राप्ति थाय छे.
अहीं ग्रन्थकर्ताए स्व अने परमां समबुद्धि राखता योगीने आ अंतरंग योगमां स्थित रहेवा
तरफ संकेत कर्यो छे. ४४.
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थई जवुं जोईए. ४६.
छतां पण चैतन्यरूप आकाशमां जयवंत हो. ४७.
शुद्धात्मानमुपाश्रितो भवति यो योगी निराशस्ततः
प्रत्यूहं कुरुते स्वभावविषमो मोहो व वैरी यदि
प्राप्त करीने आशा रहित (इच्छा के तृणा रहित) थई गया छे तेना मार्गमां
स्वभावथी दुष्ट ते मोहरूपी शत्रु जो विध्न न करे तो एटला मात्रथी ज मोक्ष
आ निर्मळबुद्धि योगीना हाथमां स्थित (छे एम) समजवुं जोईए. ४८.
यस्माद्भीर्मम यामि कातरतया यस्याश्रयं चापदि
भ्रान्तिक्लेशहरं हृदि स्फु रति चेत्तत्तत्त्वमत्यद्भुतम्
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छे अथवा एवो कोई सर्प छे; जेनाथी मने भय उत्पन्न थाय अथवा आपत्ति आवतां
हुं डरी जईने तेना शरणे जाउं? अर्थात् उपर्युक्त चैतन्यस्वरूप हृदयमां स्थित रहेतां
कदी कोईनो भय रहेतो नथी अने तेथी कोईना शरणे जवानी पण आवश्यकता रहेती
नथी. ४९.
तृष्णापत्रविचित्रचित्तकमले संकोचमुद्रां दधत्
योगीन्द्रोदयभूधरे विजयते सद्बोधचन्दोदयः
पांदडाओथी विचित्र एवा चित्तरूपी कमळने संकोचे छे तथा सम्यग्ज्ञाननो आश्रय
पामेला भव्य जीवो रूप कुमुदोना समूहने विकसित करे छे; ते सद्बोध चन्द्रोदय
(आ प्रकरण) मुनीन्द्ररूपी उदयाचळ पर्वत उपर जयवंत थाय छे. ५०.
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प्रवेश न पामतां बहार ज रही जाय छे, अर्थात् जेनुं वर्णन महाकवि पण पोतानी
वाणी द्वारा करी शकता नथी तथा जे घणी मुश्केलीथी देखी शकाय छे ते उत्कृष्ट ज्योति
जयवंत हो. १.
अने अमूर्त छे; ते चैतन्यरूप तेज आप लोकोनी रक्षा करो. २.
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हो. ४.
थाय छे. तेओ जेने वास्तविक सुख माने छे ते सुख मुक्तिमां छे अने ते घणी
मुश्केलीथी सिद्ध करी शकाय छे. ५.
पण कर्यो छे. परंतु जे शुद्ध आत्मानी ज्योति मुक्तिना कारणभूत छे तेनी उपलब्धि
तेमने सुलभ नथी. ६.
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तेनो अनुभव तो दुर्लभ ज छे. ते आत्मतत्त्व अत्यंत दुर्गम छे. ७.
स्वना निमित्ते शुद्ध निश्चयनयना आश्रये प्रयोजनभूत आत्मस्वरूपनुं वर्णन करूं छुं. ८.
ले छे ते उत्कृष्ट पद (मोक्ष) ने प्राप्त करे छे. ९.
छे ते पण गुणो अने पर्यायो आदिना विवरणथी सेंकडो शाखाओमां विस्तार पामे
छे. १०.
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मार्गमां प्रवृत्त थई चुकी छे तेने ते त्रणे (सम्यग्दर्शनादि) एक आत्मस्वरूप ज छे
छे ते ज तेमनी प्राप्तिथी कृतकृत्य थाय छे. १३.
जाणवानुं नाम सम्यग्ज्ञान छे. आ बन्नेनी साथे उक्त आत्माना स्वरूपमां स्थित
थवानुं नाम सम्यक्चारित्र छे. १४.
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सम्यग्दर्शनादिरूप बाण शुद्ध आत्मारूप रणमां कर्मरूप शत्रुओना समूहनो नाश
करीने सफळ थाय छे. १५.
पण छे छतां पण ते सम्यग्ज्ञान विना कदी पण सिद्ध थई शकतो नथी.
जेम ते कदी मुक्ति पामी शकतुं नथी ते ज रीते मनुष्य साधु थईने सर्व प्रकारना उपद्रवो अने
परिषहो सहन करे छे, घर छोडीने वनमां एकाकीपणे रहे छे तथा प्राणीओना घातथी विरत छे;
छतां पण जो तेणे सम्यग्ज्ञान प्राप्त कर्युं नथी तो ते पण कदी मुक्त थई शकतो नथी. १६.
तेने निश्चयथी शुद्ध नयमां निष्ठा राखनार समजवो जोईए. १७.
विचार करतो अशुद्ध ज आत्मस्वरूपने प्राप्त करे छे. बराबर छे