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ते मैथुन कर्म इष्ट नथी तो पछी भला अन्य प्रकारे अर्थात् परस्त्री आदिनी साथे
तो ते तेमने इष्ट केम होय? अर्थात् तेनी तो बुद्धिमान मनुष्य कदी इच्छा ज करता
नथी. १.
पशुगति अर्थात् तिर्यंचगतिनी प्राप्ति थाय छे.
समय ज रहे छे; परंतु आवा मनुष्योने एना माटे कोई पण समय निश्चित होतो नथी
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शास्त्रकारोए परस्परना विरोध रहित ज धर्म, अर्थ अने काम
वगेरे) ना दिवसोमां अथवा तपना निमित्ते तेनो निरंतर त्याग केम करावेत? अर्थात्
न करावेत.
जरूर छे के ते परस्त्री आदिनी अपेक्षाए कांईक ओछुं निन्दनीय छे. ए ज कारणे विवेकी गृहस्थ
आठम
थाय छे तेना विषयमां भला विवेकी जीवने केवी रीते आदर थई शके? अर्थात् थई
शकतो नथी. ४.
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कारण अविवेक छे. ५.
साधु एनो त्याग करे छे. ६.
प्राणीओने न आ लोकमां इष्ट छे अने न परलोकमां य. कारण के ते भविष्यमां
दुःखदायक छे. ७.
तारूं कल्याण थई शकशे नहीं.
बन्ने य लोकमां दुःख आपनार ते विषयभोगने छोडवानो प्रयत्न कर, नहि तो तारूं अहित
अनिवार्य छे. ८.
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अनुरागरूप समुद्रमां मग्न थई रह्या छे, ते मारा (पद्मनन्दि मुनि) उपर क्रोध न
करो. ९.