ॠषभ जिनेन्द्रना दर्शनादि पुण्यात्मा जीवो द्वारा ज करवामां आवे छे ...... २ .................... २७८
जिनदर्शननुं माहात्म्य ....................................................................... ३ .................... २७८
जिनेन्द्रनी स्तुति करवी असंभव छे ..................................................... ४ .................... २७९
जिनना नामस्मरणथी पण अभीष्ट लक्ष्मी प्राप्त थाय छे ....................... ५ .................... २७९
ॠषभ जिनेन्द्र सर्वार्थसिद्धिमांथी अवतीर्ण थतां तेनुं
सौभाग्य नष्ट थई गयुं हतुं ..................................................... ६..................... २७९
पुत्रवती स्त्रीओमां मरुदेवीनी श्रेष्ठता ................................................... ८ .................... २८०
इन्द्रना निर्निमेष सहस्र नेत्रोनी सफळता ............................................. ९ .................... २८०
सूर्य आदि ज्योतिषी मेरुनी प्रदक्षिणा कर्या करे छे................................ १० .................. २८१
मेरु उपर जन्माभिषेक ..................................................................... ११-१२............. २८१
कल्पवृक्षो नष्ट थई जतां तेमनुं कार्य एक ॠषभजिनेन्द्रे ज पूर्ण कर्युं ........ १३ .................. २८१
पृथ्वीनी रोमांचकता ......................................................................... १४ .................. २८२
ॠषभजिनेन्द्रनी विरक्तता अने पृथ्वीनो परित्याग ................................. १५-१६ ......२८२-२८३
ध्यानमां अवस्थित ॠषभ जिनेन्द्रनी शोभा ......................................... १७-१८............. २८३
घातिचतुष्कनो क्षय अने केवळज्ञाननी उत्पत्ति ........................................ १९ .................. २८४
घातिचतुष्कना अभावमां अघाति चतुष्कनी अवस्था ................................ २० .................. २८४
समवसरण अने त्यां स्थित जिनेन्द्रनी शोभा ....................................... २१-२२............. २८४
आठ प्रातिहार्योनी शोभा.................................................................. २३-३०......२८५-२८७
जिनवाणीनो महिमा ........................................................................ ३१-३४......२८८-२८९
नयोनो प्रभाव................................................................................ ३५ .................. २८९
जिनेन्द्रनी स्तुतिमां बृहस्पति आदि पण असमर्थ छे ............................. ३६ .................. २८९
प्रभु द्वारा प्रकाशित पथना पथिक निरुपद्रव मोक्षनो लाभ करे छे............ ३७ .................. २८९
मोक्षनिधि सामे अन्य सर्व निधिओ तुच्छ छे ...................................... ३८ .................. २९०
जिनेन्द्रोक्त धर्मनी अन्य धर्म करतां विशेषता ....................................... ३९-४०............. २९०
जिनना नख-केश न वधवामां ग्रन्थकारनी कल्पना .................................. ४१ .................. २९१
त्रणे लोकना जनो अने इन्द्रनुं नेत्र द्वारा जिनेन्द्रदर्शन ............................ ४२-४३............. २९१
देवो द्वारा प्रभुचरणोनी नीचे सुवर्णकमळोनी रचना ............................... ४४ .................. २९२