मनुष्यरूपी वृक्षने पामीने अमृत-फळ ग्रहण करवुं योग्य छे ..................... ३८ ...................२६०
योगीओनुं निर्दोष मन अज्ञानांधकारने नष्ट करे छे ............................... ३९ ...................२६०
योगी क्यारे सिद्ध थाय छे ............................................................... ४० ...................२६१
आत्मस्वरूपनो विचार ...................................................................... ४१-६० ...... २६१-२६६
निश्चय पंचाशत् रचवानो उल्लेख ....................................................... ६१ ................ २६७
चित्तमां आत्मतत्त्व स्थित होतां इन्द्रनी संपदानुं प्रयोजन रहेतुं नथी ........ ६२ ...................२६७
१२. ब्रÙचर्यरक्षावर्ति
१ – २२
२६८ – २७७
कामविजेता यतिओने नमस्कार ........................................................... १ .....................२६८
ब्रह्मचर्य अने ब्रह्मचारीओनुं स्वरूप .................................................... २ .....................२६८
जो ब्रह्मचर्यनी बाबतमां स्वप्नमां कोई दोष उत्पन्न होय तो पण
रात्रि विभागानुसार मुनिए तेनुं प्रायश्चित्त करवुं जोईए ................ ३ .....................२६९
ब्रह्मचर्यनी रक्षा मनना संयमथी ज थाय छे ....................................... ४ .....................२६९
बाह्य अने अभ्यंतर ब्रह्मचर्यनुं स्वरूप अने तेमनुं कार्य ......................... ५ .................... २७०
पोताना व्रतोनी विधिना रक्षण माटे मुनिए स्त्री मात्रनो
परित्याग करवो जोईए ............................................................ ६..................... २७०
स्त्रीनी वार्ता पण मुनिधर्मने नष्ट करनार छे ........................................ ७ .................... २७०
रागपूर्वक स्त्रीमुखनुं अवलोकन अने स्मरण प्रतिष्ठा, यश अने
तप आदिने नष्ट करनार छे ...................................................... ८-९ ................. २७१
मुनिने कोई पण स्त्रीनी प्राप्तिनी संभावना न रहेवाथी तद्विषयक
अनुराग छोडवो ज जोईए ....................................................... १० .................. २७२
श्रावक स्त्रीरूप गृहथी गृहस्थ अने मुनि तेना परित्यागथी
ब्रह्मचारी (अणगार) थाय छे .................................................... ११ .................. २७२
स्त्रीनुं अस्थिर सौन्दर्य मूर्ख मनुष्योने ज आनंदजनक थाय छे ................. १२-१४............. २७३
स्त्रीनुं शरीर घृणास्पद छे.................................................................. १५ .................. २७४
स्त्रीना विषयमां अनुरागवर्धक काव्य रचनार कवि केवी रीते
प्रशंसनीय कहेवाय? ................................................................. १६-१७ ......२७४-२७५
जो परधनरूप स्त्रीनी अभिलाषा न करनार गृहस्थ देव कहेवाय छे
तो मुनि केम देवोनो देव न होय? ............................................ १८ .................. २७५
सुख अने सुखाभास ....................................................................... १९ .................. २७५
स्त्रीनो परित्याग करनार साधुओने पुण्यात्मा मनुष्यो पण नमस्कार करे छे २० ...................२७६
तपनुं अनुष्ठान मनुष्य पर्यायमां ज संभव छे ..................................... २१ ...................२७६
विषय
श्लोक
पृष्ठांक
[ १९ ]