Padmanandi Panchvinshati-Gujarati (Devanagari transliteration).

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योगसिद्धिनुं कारण साम्यभाव छे ....................................................... ४१ ...................२४६
परमात्मानुं केवळ नामस्मरण पण अनेक जन्मोना पाप नष्ट करे छे ........ ४२ ...................२४६
योगीनायक कोण? ........................................................................... ४३ .................. २४७
योगीए स्व-परने समान देखवा जोईए .............................................. ४४ .................. २४७
अज्ञानीना विकारो देखीने योगी क्षुब्ध थता नथी .................................. ४५ .................. २४७
आ शास्त्र भणवाथी प्रबोध प्राप्त थाय छे .......................................... ४६ .................. २४७
पद्मनन्दीरूप चन्द्रथी करवामां आवेली रमणीयता जयवंत हो................... ४७ .................. २४८
योगीनुं स्वरूप ................................................................................ ४८ .................. २४८
गुरुद्वारा उपदिष्ट तत्त्व हृदयस्थ थतां मने कोईनो भय नथी ................... ४९ .................. २४८
सद्बोधचन्द्रोदय जयवंत हो .............................................................. ५० .................. २४९
११. निश्चयपंचाशत्
६२
२५०२६७
चिन्मयज्योति जयवंत हो ................................................................. १-३ ................. २५०
मोहान्धकारना नाशक गुरु जयवंत हो................................................. ४ .................... २५१
साचुं सुख दुःसाध्य मुक्तिमां छे ........................................................ ५ .................... २५१
शुद्ध आत्मज्योतिनी उपलब्धि सुलभ नथी .......................................... ६..................... २५१
आत्मबोधनी अपेक्षाए तेनो अनुभव विशेष दुर्लभ छे .......................... ७ .................... २५१
व्यवहार अने शुद्धनयनुं स्वरूप अने तेमनुं प्रयोजन .............................. ८-१० ............... २५२
मुख्य अने उपचार विवरणोने जाणवाना उपायभूत होवाथी ज
व्यवहार पूज्य छे ................................................................... ११ .................. २५२
रत्नत्रयनुं स्वरूप अने तेनुं आत्मा साथे अभिन्नपणुं ............................ १२-१४............. २५३
सम्यग्दर्शनादिरूप बाणोनी सफळता ..................................................... १५ .................. २५३
सम्यग्ज्ञान विना साधु वनमां स्थित वृक्षनी जेम सिद्ध थई शकता नथी ... १६ .................. २५४
शुद्धनयनिष्ठ कोण होय छे ................................................................ १७ .................. २५४
शुद्ध अने अशुद्ध नयोनुं कार्य ............................................................ १८ .................. २५४
रत्नत्रयनी पूर्णता थतां जन्मपरंपरा चालु रही शकती नथी .................... १९ .................. २५५
चित्ततरुना नाशनो उपाय ................................................................. २० .................. २५५
कर्मरूप कीचड भेदज्ञानरूप कतकफळथी नष्ट थाय छे ............................... २१ .................. २५५
शरीर, तदाश्रित रोगादि अने कर्मकृत क्रोधादि विकारोनी आत्माथी भिन्नता २२-३४......२५५-२५९
सर्व चिन्ता त्याज्य छे, आ बुद्धि द्वारा आविष्कृत तत्त्व
चैतन्य-समुद्रने शीघ्र वधारे छे ................................................... ३५ .................. २५९
मारुं स्वरूप आवुं छे ...................................................................... ३६ .................. २५९
बन्धना कारणभूत मनना नियंत्रणथी ते, ते बंधनथी मुक्त करी देशे ........ ३७ .................. २५९
विषय
श्लोक
पृष्ठांक
[ १८ ]