वीरनन्दी गुरुना सदुपदेशथी मने त्रण लोकनुं राज्य पण अभीष्ट नथी .... ३२ .................. २३२
आलोचनाना अभ्यासनुं फळ ............................................................. ३३ .................. २३२
मुक्ति-हंसीना अभिलाषी हंसने नमस्कार ............................................ ३ .................... २३५
चित्स्वरूपनो महिमा ........................................................................ ४-७ .......... २३५-२३६
मन पोताना मरणना भयथी परमात्मामां स्थित थतुं नथी .................... ८ .....................२३६
अज्ञानी आत्मगत तत्त्वने अन्यत्र देखे छे ........................................... ९-१० ............... २३७
प्रतीति रहित तपस्वी नाटकना पात्र जेवा छे ....................................... ११ .................. २३७
भवभ्रमणनुं कारण अनेक धर्मात्मक चित्तत्त्वने अंध-हस्ति-न्यायथी
स्वाभाविक चेतनाना आश्रये जीव निज स्वरूप प्राप्त करी ले छे ............. १५ .................. २३९
आत्मस्वरूपनी प्राप्तिनो उपाय .......................................................... १६-२० ......२३९-२४०
योगीने सुख-दुःखनी कल्पना केम नथी थती ........................................ २१ .................. २४०
मननी गति निरालंब थतां अज्ञान बाधक थतुं नथी ............................. २२ .................. २४०
रोग अने जरा आदि शरीराश्रित छे, आत्माश्रित नथी .......................... २३-२५............. २४१
योगनो महिमा .............................................................................. २६ .................. २४१
आत्मानुं रमणीय पद शुद्ध बोध छे ................................................... २७ .................. २४२
आत्मबोधरूप तीर्थमां स्नान करवाथी अभ्यंतर मळ नष्ट थाय छे ........... २८ .................. २४२
चित् समुद्रना तटना आराधनथी रत्नोनो संचय अवश्य थाय छे ............. २९ .................. २४२
सम्यग्दर्शनादिरूप रत्नत्रय निश्चयथी एक ज छे .................................... ३० .................. २४३
सम्यग्दर्शनादिरूप बाणोनुं फळ ........................................................... ३१ .................. २४३
मुनिनी वृत्ति केवी होय छे ............................................................... ३२ .................. २४४
समीचीन समाधिनुं फळ ................................................................... ३३-३४............. २४४
योगनी कल्पवृक्ष साथे समानता ......................................................... ३५ .................. २४४
ज्यां सुधी परमात्मबोध थतो नथी त्यां सुधी ज श्रुतनुं परिशीलन होय छे ... ३६ .................. २४५
चित्प्रदीप मोहान्धकारनो क्यारे नाश करे छे......................................... ३७ .................. २४५
बाह्य शास्त्रोमां विचरनारी बुद्धि दुराचारिणी स्त्री जेवी छे ...................... ३८ .................. २४५
गुरुना उपदेशनो प्रभाव ................................................................... ३९-४०..............२४६