१८. शान्तिनाथ स्तोत्र
१ – ९
३३० – ३३४
त्रण छत्रादिरूप आठ प्रातिहार्योना आश्रयथी भगवान
( शान्तिनाथ तीर्थंकरनी स्तुति) ................................................... १-८ ..........३३०-३३३
जे स्तुति इन्द्रादि पण करी शकता नथी ते में भक्तिवश करी छे............. ९ .................... ३३४
१९. जिनपूजाष्टक
१ – १०
३३५ – ३३९
जळ, चंदनादि आठ द्रव्यो वडे पूजा अने तेना फळनो उल्लेख ................ १-८ ..........३३५-३३८
पुप्पांजलि आपवी ........................................................................... ९ .................... ३३८
वीतरागजिननी पूजा केवळ आत्मकल्याण माटे करवामां आवे छे .............. १० .................. ३३८
२०. करुणाष्टक
१ – ८
३४० – ३४२
( पोतानी उपर दया करीने जन्मपरंपराथी मुक्त करवानी प्रार्थना)
२१. क्रियाकांMचूलिका
१ – ८
३४३ – ३५०
दोषोए जिनेन्द्रमां स्थान न पामीने जाणे गर्वथी ज तेमने छोडी दीधा .... १ .................... ३४३
स्तुति करवानी असमर्थता प्रगट करीने भक्तिनी प्रमुखता अने तेनुं फळ ... २-७ ..........३४३-३४५
रत्नत्रयनी याचना ........................................................................... ८ .....................३४६
आपना चरण-कमळ पामीने हुं कृतार्थ थई गयो .................................. ९ .....................३४६
अभिमान के प्रमादवश थईने जे रत्नत्रय आदि विषयमां
अपराध थयो छे ते मिथ्या हो ................................................. १० .................. ३४७
मन, वचन, काया अने कृत, कारित, अनुमोदनाथी जे प्राणीओने
पीडा थई छे ते मिथ्या हो ...................................................... ११ .................. ३४७
मन, वचन अने काया द्वारा उपार्जित मारुं कर्म आपना
पाद स्मरणथी नाशने प्राप्त थाव............................................... १२ .................. ३४७
सर्वज्ञनुं वचन प्रमाण छे .................................................................. १३ .................. ३४८
मन, वचन अने कायानी विकळताथी जे स्तुतिमां न्यूनता
थई छे तेने हे वाणी! तुं क्षमा कर ........................................... १४ .................. ३४८
आ अभीष्ट फळ आपनार क्रियाकांडरूप कल्पवृक्षनुं एक पत्र छे ............... १५ .................. ३४९
क्रियाकांड संबंधी आ चूलिका भणवाथी अपूर्ण क्रिया पूर्ण थाय छे ........... १६ .................. ३४९
जिन भगवानना शरणमां जवाथी संसार नष्ट थाय छे.......................... १७ .................. ३४९
में आपनी पासे आ वाचाळता केवळ भक्तिवश करी छे ....................... १८ .................. ३५०
२२. एकत्वदशक
१ – ११
३५१ – ३५३
परमज्योतिना कथननी प्रतिज्ञा .......................................................... १ .................... ३५१
विषय
श्लोक
पृष्ठांक
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